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________________ (३९) ज्ञान का स्वरूप : काल का स्वरूप ३०१ ३०२ आप्तवाणी-४ वह तो बोझा कहलाएगा। भूलने से भुलाया नहीं जा सकता और जो भूलने जाएँ वह और अधिक याद आता है। एक व्यक्ति मुझे कह रहा था कि, मैं सामायिक करने बैठता हूँ तब विचार करता हूँ कि 'दुकान आज याद नहीं आए।' उस दिन सामायिक में सबसे पहला धमाका दुकान का ही होता है! ऐसा किसलिए होता है? क्योंकि दुकान का तिरस्कार किया न कि दुकान याद नहीं आए! हमें तो किसीका तिरस्कार नहीं करना चाहिए। वर्तमान में रहना, वही एक बात है। भूतकाल और भविष्यकाल के साथ हमारा लेना भी नहीं है और देना भी नहीं है। वर्तमान में ही रहे, वही अमरपद कहलाता है। हम वर्तमान में ऐसे के ऐसे ही रहते हैं। रात को उठाओ तब भी ऐसे और दिन में उठाओ तब भी ऐसे ही। जब देखो तब ऐसे के ऐसे ही होते हैं। कालद्रव्य दादाश्री : ऐसा है न, अभी लोग तो समय के अधीन है। परन्तु मूल जो समय हुआ है वह 'हमसे' ही उत्पन्न हआ है। आप ही राजा हो और राजा के पीछे उत्पन्न हो चुका हुआ यह सब है। प्रश्नकर्ता : समय ही भगवान है और समय ही परमेश्वर है? दादाश्री: समय ही परमेश्वर नहीं होता। नहीं तो लोग 'समयसमय' करते रहते। परमेश्वर तो आप खुद ही हो, उसे पहचानने की जरूरत है। काल तो बीच में निमित्त है मात्र। हममें और आपमें फर्क कितना? हमने काल को वश में किया है। लोगों को तो काल खा जाता है। आपको काल को वश करना बाक़ी है। काल वश में किस तरह होता है? भूतकाल विस्मृत हो गया, भविष्यकाल 'व्यवस्थित' के हाथ में, इसलिए वर्तमान में रहो। तब काल वश में होता है। अपना 'अक्रम' का सामायिक करते-करते वर्तमानकाल को पकड़ना आ जाता है। ऐसे सीधा-सीधा नहीं आता। आप एक घंटे सामायिक में बैठते हो तब वर्तमान में ही रहते हो न! वर्तमान में रहना मतलब क्या? अभी यदि आप हिसाब लिख रहे हों तो बिलकुल एक्जेक्ट उसमें ही रहोगे न? उस समय भविष्य में जाओ तो हिसाब में भूल हो जाएगी। वर्तमान में ही रहे तो एक भी भूल नहीं हो ऐसा है। प्राप्त वर्तमान को भोगो, ऐसा मैं कहता हूँ। भूतकाल तो चला गया। भूतकाल को तो ये बुद्धिशाली भी नहीं उखाड़ते। और भविष्य का विचार करे, वह अग्रशोच है, इसलिए वर्तमान में रहो। वर्तमान में सत्संग होता है तो वह एकाग्र चित्त से सुनना चाहिए। हिसाब लिख रहे हो तो वह एकाग्र चित्त से लिखो और गालियाँ दे रहे हो तो गालियाँ भी एकाग्र चित्त से दो। वर्तमान में बरते सदा, वे ज्ञानी। लोग भविष्य की चिंता को लेकर और भूतकाल को लेकर वर्तमान नहीं भोग सकते और हिसाब में भूल कर देते हैं। 'ज्ञानी पुरुष' वर्तमान नहीं बिगाड़ते। प्रश्नकर्ता : भूत और भविष्य को भूल जाना है? दादाश्री : नहीं, भूल नहीं जाना है, वर्तमान में ही रहना है। भूलना, प्रश्नकर्ता : काल नाम का द्रव्य किस तरह काम करता है? दादाश्री : काल तो नैमित्तिक है। एक परमाणु उसका अवकाश भाग छोडकर जितने काल में दूसरे अवकाश काल में प्रविष्ट होता है. उतने काल को 'समय' कहते हैं। यह संसार समसरण है, निरंतर प्रवाहमान है। थोड़ा भी स्थिर नहीं रहता। बहुत सारे समय का पल बनता है। हमारे कहते ही आप समझ जाते हो. वह अधिक डेवलपमेन्ट कहलाता है। जितना काल कम ले उतना डेवलपमेन्ट अधिक और अधिक काल ले उतना कम डेवलपमेन्ट कहलाता है। काल सूक्ष्म है। समय सूक्ष्म से भी सूक्ष्म है। हमारा काल समय के नज़दीक का होता है और तीर्थंकरों का समय होता है। आज यदि समय तक पहुँचे तो मोक्ष हो जाए। परन्तु इस काल की विचित्रता है कि समय तक पहुँचा नहीं जा सकता।
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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