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________________ (३९) ज्ञान का स्वरूप : काल का स्वरूप स्वरूपज्ञान का अधिकारी प्रश्नकर्ता: प्रारब्ध के पाश से बंधे हुए पुरुष को ज्ञान का अधिकार है क्या? दादाश्री : महावीर भगवान भी प्रारब्ध से ही बंधे हुए थे और उन्हें केवलज्ञान का अधिकार था, तो आपको आत्मज्ञान का अधिकार तो होगा न? प्रारब्ध से हर एक व्यक्ति बंधा हुआ तो होता है, इसलिए ही तो जन्म होता है। अंतिम अवतार भी प्रारब्ध से बंधा हुआ हो तभी होता है। प्रश्नकर्ता: फिर प्रारब्ध को छोड़ देता है? दादाश्री : फिर प्रारब्ध नहीं बंधता। हम आपको ज्ञान देंगे फिर आपको प्रारब्ध बंधेगा ही नहीं। इसलिए फिर कर्म डिस्चार्ज होंगे परन्तु नये चार्ज नहीं होंगे, ऐसा यह विज्ञान है। प्रश्नकर्ता: सपत्नी ज्ञान लेने का अधिकार है क्या? दादाश्री : इस काल में किसीका अधिकार देखने जैसा ही नहीं है। इस काल में किसीको अधिकार है ही नहीं। इसलिए हम तो चाहे जो आए उसके लिए खोल दिया है। यह काल कौन-सा है जानते हो? जैन दुषमकाल कहते है और वेदांती कलियुग कहते है ? कलियुग अर्थात् क्या? कभी भी चैन नहीं पड़े, वह । 'कल क्या होगा? कल का क्या होगा?' इस तरह चैन नहीं पड़ता। और दुषमकाल मतलब क्या? अति दुःख उठाकर भी समता नहीं रहती। अब ऐसे काल में अधिकार देखने जाएँ तो किसका ३०० नंबर लगेगा ? अधिकारी हैं ही नहीं !! जाएगा? है? आप्तवाणी-४ प्रश्नकर्ता: तो फिर आप ज्ञान देते है वह कृपा का स्वरूप माना दादाश्री : कृपा से ही काम होगा। भीतर जो प्रगट हो गए है उन 'दादा भगवान' की कृपा ही सीधी उतर जाती है। उससे काम ले लेना है। हर किसीके पात्र के अनुसार कृपा उतरती है, फिर जितना विनयवाला उतनी कृपा अधिक। सबसे बड़ा गुण इस जगत् में कोई हो तो वह विनय गुण ! है ? प्रश्नकर्ता: ऐसी कहावत है न कि कलियुग में मोक्ष जल्दी मिलता दादाश्री : सही बात है। इसका कारण है। कलियुग में लोग पास नहीं होते इसलिए प्रोफेसरों द्वारा निश्चित किया हुआ पढ़ाई का लेवल अधिक नीचे लाना पड़ता है। नहीं तो पास हो सकें, ऐसा होता होगा? कलियुग में मनुष्यत्व की कक्षा एकदम लो (निम्न) हो गई है इसलिए ही आपकी क़ीमत है न? नहीं तो कौन वहाँ पर मोक्ष में घुसने दे इस काल के लोगों को। परीक्षा में किसीको पास तो करना पड़ेगा न, नहीं तो कॉलेज बंद कर देने पड़ें। इसलिए लेवल उतार दिया है। वर्तमान में बरतें, ज्ञानी प्रश्नकर्ता : युग की परिभाषा में यह पहली बार कलियुग आया दादाश्री : हर एक कालचक्र में कलियुग होता ही है। कलियुग अर्थात् क्या कि इस दिन के बाद रात आती है न? वैसे, यह कलियुग है । कलियुग है तो सत्युग को सत्युग कह सकते है। यदि कलियुग नहीं होता तो सत्युग की क़ीमत ही नहीं होती न? प्रश्नकर्ता : युग के अधीन मनुष्य है या मनुष्य के अधीन युग है?
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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