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________________ अंत:करण का स्वरूप अंतःकरण का स्वरूप ज्ञानीपुरुष, विश्व की आब्जर्वेटरी 'ज्ञानीपुरुष' को तो विश्व की आब्जर्वेटरी (वेधशाला) कहा जाता है। ब्रह्मांड में जो चल रहा है, 'ज्ञानीपुरुष' वह सब जानते हैं। वेद से ऊपर की बात 'ज्ञानीपुरुष' बता सकते हैं। ___ आप कुछ भी पूछिये, हमें बुरा नहीं लगेगा। सारे विश्व के साइन्टिस्ट (वैज्ञानिक) जो मांगे वह सब ज्ञान देंगे, कि मन क्या है, कैसे उसका जन्म होता है, कैसे उसका मरण हो सकता है। मन का, बुद्धि का, चित्त का, अहंकार का, हरेक चीज़ का साइन्स (विज्ञान) दुनिया को हम देने के लिए आये हैं। मन क्या चीज़ है, बुद्धि क्या चीज़ है, चित्त क्या चीज है, अहंकार क्या चीज़ है, सब कुछ जानना चाहिए। प्रश्नकर्ता : जिसको मन होता है, उसे ही मनुष्य कहते हैं? दादाश्री : हाँ, सही है। मगर इन जानवर को भी मन है, मगर उसका मन लिमिटेड (सीमित) है और मनुष्य का अन्लिमिटेड (असीमित) मन है। खुद ही भगवान हो जाये ऐसा मन है, उसके पास। मनोग्रंथि से मुक्ति कैसे ? प्रश्नकर्ता : मन है, वही बड़ी तकलीफ है। दादाश्री : नहीं, मन तो बहुत फायदा करानेवाला है। वह मोक्ष में भी ले जाता है। प्रश्नकर्ता : मन क्या चीज़ है? दादाश्री : मन अनेक ग्रंथिओं का बना हुआ है। ग्रीष्म ऋतु में आप खेत में जाते हैं, तो खेत की मेड़ होती है तो वहाँ आप बोलेंगे कि हमारी मेड़ पर कोई नहीं, एकदम साफ है। तो हम बोलेंगे, जून महीने की पंद्रह तारीख जाने दो, फिर आपको बारिश में मालूम हो जाएगा। फिर बारिश हो जाये बाद में आप बोलेंगे कि, इतनी इतनी बेलें निकला हैं। तो हम बोलेंगे कि 'जो बेलें निकली हैं, उनकी ग्रंथियाँ हैं।' अंदर जो ग्रंथियाँ है उन्हें पानी का संजोग मिल गया तो वे सब उग जाती हैं। ऐसा इन्सान के अंदर मन है, वह ग्रंथि स्वरूप है। विषय की ग्रंथि है, लोभ की ग्रंथि है, मांसाहार की ग्रंथि है, हर तरह की ग्रंथि है। मगर उसे समय नहीं मिला, संजोग नहीं मिला, वहाँ तक वह ग्रंथि फूटेगी नहीं। उसका टाइम हो गया. संजोग मिल गया तो ग्रंथि में से विचार आ जाएगा। औरत को देखकर उसका विचार आता है, नहीं देखा तब तक कोई दिक्कत नहीं। आपको जो विचार आएगा, वह दूसरे को नहीं आएगा, क्योंकि हरेक मनुष्य की ग्रंथि अलग अलग है। कुछ मनुष्यों को मांसाहार की ग्रंथि ही नहीं होती, तो उनको विचार तक नहीं आता है। एक कॉलिज के तीन विद्यार्थी है, उसमें एक जैन है, एक मुस्लिम है और एक वैष्णव है। वे तीनों समान उम्र के हैं। तीनों में फ्रेन्डशीप (मित्राचारी) है। जो जैन का लड़का है, उसे मांसाहार करने का विचार बिल्कुल ही नहीं आता। वह क्या कहता है, 'ये हमें पसंद नहीं है, हम तो उसे देखना भी नहीं चाहते।' दूसरा, वैष्णव का लड़का है, वह क्या कहता है कि, 'हमें कभी कभी मांसाहार खाने का विचार आता है, मगर हमने कभी नहीं खाया।' तीसरा, मुस्लिम का लड़का कहता है, 'हमें तो मांसाहार का बहुत विचार आता है। हमें तो मांसाहार (nonvegetarian food) बहुत पसंद है। यह हमें हररोज खाना चाहिए।' इसका क्या कारण है? मुस्लिम को मांसाहार का बहत विचार आता है, वैष्णव को कम विचार आता है और जैन को बिल्कुल विचार
SR No.009574
Book TitleAntakaran Ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size219 KB
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