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________________ संपादकीय केवल ज्ञानीपुरुष ही अपने अंत:करण से बिल्कुल अलग रहते है। आत्मा में ही रहकर उसका यथार्थ वर्णन कर सकते हैं। ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादा भगवान (दादाश्री) ने अंत:करण का बहुत ही सुंदर, स्पष्ट वर्णन किया है। के ऊपर अहंकार और इन सबके ऊपर आत्मा है। बुद्धि, वह मन और चित्त-दोनों में से एक का सुनकर निर्णय करती है और अहंकार अंधा होने से बुद्धि के कहे अनुसार, उस पर अपने हस्ताक्षर कर देता है। उसके हस्ताक्षर होते ही वह कार्य बाह्यकरण में होता है। अहंकार कर्ताभोक्ता होता है वह स्वयं कुछ नहीं करता, वह सिर्फ मानता ही है कि मैंने किया। और वह उसी समय कर्ता हो जाता है। फिर उसे भोक्ता होना ही पड़ता है। संयोग कर्ता है, मैं नहीं, यह ज्ञान होते ही अकर्ता होता है, फिर उसे कर्म चार्ज नहीं होते। अंत:करण की सारी क्रियाएँ मिकानिकल (यांत्रिक) हैं। इसमें आत्मा को कुछ करना नहीं पड़ता। आत्मा तो सिर्फ ज्ञाता-दृष्टा और परमानंदी ही है। - डॉ. नीरूबहन अमीन अंत:करण के चार अंग है : मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार। हरेक का कार्य अलग अलग है। एक समय में उनमें से एक ही कार्यान्वित होता है। मन क्या है? मन ग्रंथियों का बना हुआ है। पिछले जन्म में अज्ञानता से जिसमें राग-द्वेष किये, उनके परमाणु खींचे और उनका संग्रह होकर ग्रंथि हो गई। वह ग्रंथि इस जन्म में फूटती है तो उसे विचार कहा जाता है। विचार डिस्चार्ज मन है। विचार आता है उस समय अहंकार उसमें तन्मयाकार होता है। यदि वह तन्मयाकार नहीं हुआ तो डिस्चार्ज होकर मन खाली हो जाता है। जिसके ज्यादा विचार उसकी मनोग्रंथि बड़ी होती है। अंत:करण का दूसरा अंग है, चित्त! चित्त का स्वभाव भटकना है। मन कभी नहीं भटकता। चित्त सुख खोजने के लिए भटकता रहता है। किन्तु वे सारे भौतिक सख विनाशी होने की वजह से उसकी खोज का अंत ही नहीं आता। इसलिए वह भटकता ही रहता है। जब आत्मसुख मिलता है तभी उसके भटकने का अंत आता है। चित्त ज्ञानदर्शन का बना हुआ है। अशुद्ध ज्ञान-दर्शन यानी अशुद्ध चित्त, संसारी चित्त और शुद्ध ज्ञान दर्शन यानी शुद्ध चित्त, यानी शुद्ध आत्मा। बुद्धि, आत्मा की इन्डिरेक्ट लाइट है और प्रज्ञा डिरेक्ट लाइट है। बुद्धि हमेशा संसारी मुनाफा-नुकसान बताती है और प्रज्ञा हमेशा मोक्ष का ही रास्ता बताती है। इन्द्रियों के ऊपर मन, मन के ऊपर बुद्धि, बुद्धि
SR No.009574
Book TitleAntakaran Ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size219 KB
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