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________________ अंत:करण का स्वरूप २१ अंत:करण का स्वरूप ये जगत क्या है? वह संक्षिप्त में बता देता हूँ। एक शुद्धात्मा है और दूसरा संयोग है, सिर्फ दो ही वस्तुएँ हैं। संयोग के बहुत विभाजन होते हैं। स्थूल संयोग, सूक्ष्म संयोग और वाणी के संयोग। तुम एकांत में बैठे हो और मन ने कुछ बताया, तो वह तुम्हारा सूक्ष्म संयोग है। कोई आदमी तुम्हें बुलाने आया वह स्थूल संयोग है। तुमने कुछ बोल दिया वह वाणी का संयोग है। जो संयोग है वह वियोगी स्वभाववाला है। जो संयोग मिलता है तुम्हें उसे कहना नहीं पड़ता कि तुम चले जाओ या तुम रहो। रहो बोलोगे तो भी वो चला जायेगा। संयोग का स्वभाव ही वियोगी है। शुद्धात्मा को कुछ नहीं करना पड़ता। उसका समय हो जायेगा तो वह उठकर चला जायेगा। संयोग को बुद्धि ने दो प्रकार से बता दिया कि, 'यह मेरे लिए अच्छा है और यह मेरे लिए बुरा है।' वे सभी संयोग हैं। मगर बुद्धि ने अच्छा-बुरा नाम दे दिया। इसमें 'ज्ञानी' अबुध रहते हैं। संयोग को संयोग ही मान लेते हैं। वे संयोग के दो भाग नहीं करते। द्वन्द्व नहीं करते कि 'बुरा है और अच्छा है।' जो अबुध हो गया उसे संयोग कुछ नुकसान नहीं करता और बुद्धिवाला हो गया कि 'अच्छा, बुरा', ऐसा किया तो फिर तकलीफ होती है। 100% बुद्धिशाली हो तो भी, ये जगत किसने बनाया यह नहीं समझ सकता। आज के साइन्टिस्ट लोग समझ गये हैं कि क्रिएशन (सर्जन) में खुदा की जरूरत नहीं है। 'अहम्कार' का सोल्युशन वो बग (खटमल) मारने की दवाई होती है, उसे मनुष्य पी जाता है, फिर उसे मारने में भगवान की जरूरत पड़ती है? प्रश्नकर्ता : मगर दवाई पीने की बुद्धि कौन देता है? दादाश्री : अंदर जो बुद्धिवाला है वह देता है। प्रश्नकर्ता : वह आत्मा है? दादाश्री : नहीं, आत्मा इसमें हाथ ही नहीं डालता। आत्मा निर्लेप है, असंग ही है। ये सब अहंकार की क्रिया है। प्रश्नकर्ता : तो यह खटमल मारने की दवाई एक आदमी ने ली तो उसका पूर्व का कुछ संबंध है? दादाश्री : हाँ, पूर्व का ही संबंध है। वह अपना ही कर्म है, दूसरा कुछ नहीं। भगवान तो इसमें हाथ ही नहीं डालते। कर्म से उसकी बुद्धि ऐसी हो गई और बग मारने की दवाई पी जाता है। आत्मा तो असंग ही है। लोग बोलते हैं कि आत्मा की इच्छा से हो गया। मगर आत्मा को इच्छा ही नहीं होती है, आत्मा को इच्छा ही नहीं है। आत्मा को इच्छा है तो वह भिखारी है। आत्मा को इच्छा हो गई तो सब खत्म हो गया। ये सब अहंकार का है, बीच में अहम् ही है। जब अहंकार चला जाये तब फिर सारे पज़ल सोल्व हो जाते हैं (पहेलियाँ सुलझ जाती हैं)। पज़ल सोल्व करने का आपका विचार है? मगर पज़ल होगा तो ही प्रोगेस (प्रगति) होगा। पज़ल होना चाहिए, प्रोब्लेम (समस्या) तो होनी चाहिए। प्रोगेस के लिए प्रोब्लेम होना चाहिए। मन की कसौटी, बुद्धि की कसौटी, अहंकार की कसौटी होनी चाहिए। 'हमने ऐसा बोल दिया', ऐसे वह स्पीच (वाणी) का मालिक हो जाता है। सब लोग भ्रांति से बोलते हैं कि 'मैंने ऐसा किया ! ऐसा किया.' वह सब भ्रांति है, सच्ची बात नहीं है। इससे अहंकार होता है। अहंकार से ही जन्म-जन्मान्तर होते हैं। वह जब लास्ट स्टेशन (मृत्यु) जाने का समय होता है, तब दोचार दिन बाकी रह गये हों तो क्या होता है? वह क्या बोलेगा? 'मैं नहीं बोल सकता' बोलना बंद हो जाता हैं। और आप बोलते हैं कि, 'मैं बोलता हूँ'। अरे, क्या बोलते हो? सारे जगत में कोई आदमी ऐसा जन्मा नहीं है कि जिसे संडास जाने की अपनी खुद की शक्ति हो। वह जब बंद हो जाएगा, तब मालूम हो कि हमारी शक्ति नहीं थी।
SR No.009574
Book TitleAntakaran Ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size219 KB
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