SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अंत:करण का स्वरूप अंत:करण का स्वरूप सूर्यनारायण का प्रकाश आयने के माध्यम द्वारा जाता है। वहाँ मिडियम (माध्यम) आयना का है। वैसे आत्मा का प्रकाश अहंकार के माध्यम द्वारा निकलता है, वह बुद्धि है। जैसा अहंकार होता है, वैसी ही बुद्धि होती है। प्रश्नकर्ता : अपने आपको 'मैं' कहते हैं, वह 'मैं' को अहंकार कहते हैं ना? दादाश्री: हाँ, वह 'मैं' का अहंकार है वहाँ बद्धि है और 'मैं' का अहंकार नहीं वहाँ ज्ञान है, प्रकाश है। हमारे में बुद्धि नहीं है और 'मैं' का अहंकार भी नहीं है। हमारे में किसी प्रकार का अहंकार नहीं है। बड़े बड़े महात्माओं को 'मैं, मैं, मैं' ही रहता है। प्रश्नकर्ता : तो फिर वह बड़ा कैसे हुआ? जब 'मैं, मैं, मैं' है तो फिर वह बड़ा नहीं है न? दादाश्री : वह तो उसकी समझ में ऐसा है कि 'मैं बड़ा हूँ'। अहंकार बीच में माध्यम है। जो प्रकाश है, उसके बीच में अहंकार का माध्यम है, साथ में बुद्धि होती है। हमारे पास बुद्धि नहीं है, क्योंकि अहंकार खत्म हो गया, फिर बुद्धि कहाँ से लायें? हम में कुछ भी अहंकार होता तो फिर हमें ज्ञान ही नहीं होता, प्रकाश नहीं होता। जहाँ अहंकार है वहाँ बुद्धि है और अहंकार नहीं वहाँ आत्मा का प्रकाश है। बुद्धि हरेक आदमी को सरिखी नहीं होती। किसी के पास ८० डिग्री, किसी के पास ८१ डिग्री, किसी के पास ८२ डिग्री, ऐसी डिग्रीवाली है। 100% (शत प्रतिशत) बुद्धि किसी को नहीं है। जब 100% बुद्धि होती है तब उसे 'बुद्ध भगवान' बोला जाता है। उनकी बुद्धि 100% हो गई थी, मगर वह प्रकाश में नहीं आये थे। उनका अहंकार क्या था? दया, दया, दया... ये दु:खी, ये दु:खी, सब दुःखी को देखकर दया आती थी। उन्हें क्या हुआ था ? वह उनका अहंकार था और इसलिए वे आगे ज्ञान में नहीं गये। वह अहंकार अच्छा अहंकार था, मगर अहंकार खड़ा है, तब तक आगे कैसे आयेगा? बाकी, बुद्ध तो भगवान हो गये। अगर एक स्टेप (कदम) आगे गये होते, तो पूर्ण भगवान हो जाते। महावीर भगवान हुए न, ऐसे पूर्ण भगवान हो जाते। बुद्धि है वहाँ मोक्ष कभी नहीं है, और कभी मिलेगा भी नहीं। चौबीस तीर्थंकरों को बुद्धि बिल्कुल नहीं थी। प्रश्नकर्ता : लेकिन उन्हें तो अनंतज्ञान है, ऐसे कहते है न? दादाश्री : वह अनंतज्ञान तो बिल्कुल ठीक है मगर उनके बुद्धि नहीं थी। बुद्धि तो सब लोगों को होती है। गरीब लोगों को भी बुद्धि तो रहती है। प्रश्नकर्ता : तो बुद्धि और ज्ञान में क्या फर्क है? दादाश्री : बहुत फर्क है। जैसे अंधेरा और उजाला है, इतना फर्क है। संसार में जो भटकता है, वह बद्धि से ही भटकता है। बद्धि से तो भगवान नहीं मिलते और बुद्धि मोक्ष में जाने ही नहीं देती । बुद्धि मोक्ष में नहीं जाने देने के लिए प्रोटेक्शन (रक्षण) करती है। नफानुकसान, प्रोफिट-लॉस बुद्धि ही बताती है। क्या करती है? प्रश्नकर्ता : व्यवहार में घुमाती है ? दादाश्री : हाँ, व्यवहार में ही घुमाती है। वह बाहर निकलने ही नहीं देती, और कभी मोक्ष में नहीं जाने देगी। बुद्धि खत्म हो जायेगी, फिर मोक्ष हो जायेगा। हम अबुध हैं। हमें बुद्धि नहीं है। छोटे बच्चे को भी बुद्धि होती है। सभी मनुष्यों को बुद्धि है। दुनिया में हम अकेले बिना बुद्धि आदमी हैं। इस दुनिया में साइन्टिस्ट (वैज्ञानिक) सब प्रकार का ज्ञान जानता है, मगर वह बुद्धि में चला जाता है। क्योंकि वह ज्ञान अहंकार सहित है और अहंकार के माध्यम से वह ज्ञान होता है। आत्मा का ज्ञान है, प्रकाश है, उस डिरेक्ट ज्ञान को ज्ञान बोला जाता है। जहाँ अहंकार नहीं है, वहाँ डिरेक्ट ज्ञान है। सारी दुनिया के तमाम सब्जेक्ट जाने, मगर जो अहंकारी ज्ञान है वह बुद्धि है और जो निर्अहंकारी ज्ञान है वह ज्ञान है।
SR No.009574
Book TitleAntakaran Ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size219 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy