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________________ अहिंसा ४७ फिर भी हम क्या कहते हैं कि जिस देह से ज्ञानी पुरुष को पहचाने उसे मित्र समान मानना। ये दवाईयाँ हिंसक हों तो वे भी लेना, पर शरीर को सँभालना। क्योंकि लाभालाभ का व्यापार है यह। यह शरीर यदि दो वर्ष अधिक टिका, तो इस देह से ज्ञानी पुरुष को पहचाना है, तो दो वर्ष में कुछ का कुछ काम निकाल डालोगे। और एक तरफ हिंसा के बारे में नुकसान जाएगा, तो इसके बदले तो बीस गुना कमाई है। तो बीस में से उन्नीस तो अपने घर रहा। यानी लाभालाभ का व्यापार है। बाकी केवल जीवजंतु ही है। यह जगत् केवल जीव ही है। ये श्वास में कितने जीव मर जाते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए? श्वास लिए बिना बैठे रहना चाहिए? बैठे रहते तो अच्छा था। उनका निबेड़ा(!) आ जाता। बगैर काम के पागलपन किया है यह तो। अब इन सबका कोई अंत ही नहीं आए ऐसा है। इसलिए जो कछ करते हो न, वह करते रहना। इसमें कोई बाल की खाल निकालने जैसा है नहीं। मात्र जो जीव हमसे त्रस्त होते हैं उन जीवों को हो सके वहाँ तक परेशान मत करना। ४८ अहिंसा नहीं है। इसलिए मन में ऐसा होता है कि यह सब अपने खाने के लिए ही है। अब पुनर्जन्म को समझें तब तो मन में विचार आए कि अपना ऐसा जन्म हो जाए तब क्या हो? पर उन्हें वैसा विचार आता नहीं। अपने हिन्दुस्तान के लोगों को विचार आया, तभी ये ब्राह्मण कहते हैं कि हमसे माँसाहार नहीं छुआ जा सकता। वैश्य कहते हैं कि, हमसे माँसाहार नहीं छुआ जा सकता। शूद्र कहते हैं, छू सकते हैं। पर वे लोग तो मरा हुआ जानवर होता है न उसे भी खाते हैं। और ये क्षत्रिय हैं, वे भी माँसाहार करते हैं। चिढ़, माँसाहारी पर दादाश्री : आप वेजिटेरियन पसंद करते हो या नोनवेजिटेरियन? प्रश्नकर्ता : मैंने अभी तक नोनवेजिटेरिन टेस्ट किया नहीं है। दादाश्री : पर वह अच्छी वस्तु है, ऐसा बोला नहीं है? प्रश्नकर्ता : ना। मैं वेजिटेरियन खाता हूँ। पर उसका अर्थ ऐसा नहीं कि नोनवेजिटेरियन खराब है। दादाश्री : ठीक है। खराब मैं उसे कहता नहीं हूँ। मैं प्लेन में आ रहा था। मेरी सीट पर मैं अकेला ही था, मेरे साथ दूसरा कोई था ही नहीं। एक बड़ा मुसलमान सेठ होगा, वह अपनी सीट पर से उठकर मेरे बगल में आ बैठा, मैं कुछ बोला नहीं। फिर मुझे धीरे से कहता है, 'मैं मुसलमान हूँ और हम नोनवेजिटेरिन फूड खाते हैं। तो आपको उस पर कोई दुख नहीं होता?' मैंने कहा, 'ना, ना। मैं आपके साथ भोजन करने बैठ सकता हूँ। सिर्फ इतना ही कि मैं लेता नहीं। आप जो कर रहे हो वह व्याजबी ही कर रहे हो। हमें उससे लेना-देना नहीं है।' तब सेठ कहते हैं, 'फिर भी हमारे ऊपर आपको अभाव तो रहता ही है न?' मैंने कहा, 'ना, ना। वह आपकी मान्यता छोड़ दो। क्योंकि आपको यह छुट्टी में मिला है। आपकी मदर ने भी नोनवेजिटेरिन खाया आहार, डेवलपमेन्ट के आधार पर फ़ॉरेनवाले क्या कहते हैं? 'भगवान ने यह दुनिया बनाई इसलिए इन मनुष्यों को बनाया। और दूसरा सब ये बकरे-मछलियाँ हमारे खाने के लिए भगवान ने बनाए।' अरे, तुम्हारे खाने के लिए बनाए, तो ये बिल्लीकुत्ते-बाघ को क्यों नहीं खाते! खाने के लिए बनाया होता तो सब एक जैसा ही बनाया होता न? भगवान ऐसा करते नहीं हैं। भगवान ने बनाया होता तो सभी आपके लिए खाने लायक चीजें ही बनाते। पर यह तो साथसाथ अफीम बनाते हैं या नहीं बनाते? और कूच (एक प्रकार का जंगली पौधा) भी होते हैं न? उसे भी बनाते हैं न? यदि भगवान बना रहे होते तो सब किसलिए बनाएँ? कृच और उन सबकी क्या जरूरत? मनुष्य के सुख के लिए ही सभी चीजें बनाते चैन से! इसलिए उल्टा ज्ञान जान बैठे हैं कि भगवान ने बनाया। अरे वे फ़ॉरेनवाले तो अभी पुनर्जन्म को समझते
SR No.009573
Book TitleAhimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size36 KB
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