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________________ माघ की.काव्यकला पीछे हम संकेत कर चुके हैं कि कविवर माघ विचित्र मार्ग के प्रमुख कवि हैं और उनकी काव्यशैली 'अलंकृत' है, शैली का चरम दृष्टान्त, जिसका प्रभाव उत्तरवर्ती कवियों पर बहुत अधिक पड़ा । माघ परिष्कृत पदविन्यास के आचार्य हैं । सीधे-सादे शब्दों में, अव्याज मनोहर शैली में, वस्तु-वर्णन श्रेष्ठकाव्य की कसौटी नहीं है, प्रत्युत वक्रोक्ति से विभूषित तथा शाब्दिक तथा आर्थिक चमत्कारों के उद्भावक विविध अलंकारों से समन्वित पदविन्यास ही माघ के विचार में काव्य का यथार्थ निदर्शन है । परिणामत: इनका काव्य समास-बहुल है । उसमें विकट वर्गों की उदारता है साथ ही गाढ़बन्धों का हृदयाकर्षण है । माघ का मस्तिष्क काव्य-कामिनी की साज-सज्जा करने में ही सदा संलग्न रहता है । इसीलिए उनका ध्यान इतिवृत्त-निर्वाहकता में रमा ही नही ।। इस दृष्टि से वे कालिदास से तो क्या भारवि से भी मात खा जाते हैं । शिशुपालवध में महाकाव्य के लिए आवश्यक प्रासंगिक वर्णनों का सन्तुलन देखने को नही मिलता । चतुर्थ सर्ग से त्रयोदश सर्ग तक का वर्णन विशेष रूप से विस्तृत हो गया है । वस्तुत: मूलकथा प्रथम, द्वितीय और चतुर्दश से विंश सर्ग तक ही देखने को मिलती है । और वह भी लड़खड़ाती हुई आगे बढ़ती है । काव्य का प्रधानरस 'वीर' होने पर भी वह गौण श्रृङ्गाररस से आक्रान्त हो जाता है । वे विविध अलङ्कारों श्लेष-यमकादि के प्रयोग करने में सिद्धहस्त हैं । इसका दृष्टान्त है, काव्य का १९ वाँ सर्ग, जिसमें चित्रालङ्कारों का बाहुल्य है साथ ही कवि की चमत्कारिणी प्रतिभा का निदर्शन । माघ ने विविध छन्दों का प्रयोग किया है- भारवि के १४ छन्दों के विरोध में माघ ने २३ छन्दों का प्रयोग कर अपने पाण्डित्य का प्रदर्शन किया है ।। वस्तुत: माघ पण्डित कवि' है । अत: कवि ने विविध शास्त्रों के विषयों का उपयोग अपनी उपमा तथा उत्प्रेक्षा के प्रयोग के लिए बड़ी ही निपुणता से किया है उदात्त चरित शिशुपाल एक ही चाल में अपने शत्रुओं को उसी प्रकार मार भगाता है, जिस प्रकार एक ही पद में विद्यमान उदात्त स्वर अन्य स्वरों को अनुदात्त बना देता है । इस (२। ९५) उपमा में कवि ने वैदिक व्याकरण के मूल तथ्य का बड़ी ही विदग्धता से संकेत दिया है । माघ का प्रकृति-वर्णन भी अलंकृत शैली का ही संकेत देता है । उनका प्रकृति-वर्णन दूर की कल्पना और यमक से ग्रस्त है । फिर भी कुछ स्थल सरसता से पूर्ण हैं । माघ की मूल प्रकृति वस्तुतः श्रृङ्गारिक-उद्दीपन पक्ष की है। विशेष अध्ययन के लिए देखिए - १. संस्कृत महाकाव्य की परम्परा' - डॉ केशवराव मुसलगांवकर, चौखम्बा प्रकाशन । २. 'महाकाव्य पञ्चक में व्युत्पत्ति' - डॉ श्याम मुसलगांवकर, प्रकाशक-ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली।
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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