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________________ [ 71 ] १७१४७ की कथा को १।२३ में और १८१ की कथा को ५।३१ में देखें | १८ ६ - प्रलय वर्णन - प्रलय के विविध प्रकारों में प्रलय का एक प्रकार यह भी शास्त्रों में वर्णित है कि इतनी तीव्र गति से हवा चलती है कि पर्वत परस्पर टकराने लगते हैं और उनके मध्य में पड़ने से जगत् के प्राणिमात्र चूर्णित होकर नष्ट हो जाते हैं । १८ । २५ - इस कथांश को १४१४ में देखें । १८ । ४० पुराणों की कथाओं के अनुसार बाह्यय सृष्टि करने की इच्छा करने वाले ब्रह्मा प्रथम आभ्यन्तर सृष्टि देखने के लिये विष्णु के उदर में प्रविष्ट हुए थे । 'पुरा किल बाह्यं सिसृक्षुर्ब्रह्मा पूर्वसृष्टिर्दिदृक्षया विष्णोः कुक्षिं प्राविशदिति पौराणिकी कथा ।' केचिद् ब्रह्मा ब्राह्मणो मार्कण्डेय इति व्याचक्षते । सोऽपि - भगवन्महिमावलोकन कौतुकात्तदनुज्ञया महाप्रलये तदुदरं प्रविश्य बभ्रामेत्यागमः । ( मल्लिनाथ : ) १८ । ५० विन्ध्यवासिनी देवी आकाशवाणी के अनुसार अपनी बहन 'देवकी' की सन्तान से अपनी मृत्यु होना है यह जानकर कंस ने वसुदेव और देवकी को कारागार में बन्द कर दिया, और उसकी सन्तानों को मारने लगा । इस प्रकार क्रम चालू रहने पर श्रीकृष्ण भगवान् का जन्म वहीं कारागार में ही हुआ । श्रीकृष्ण की माया के प्रभाव से वसुदेव ने श्रीकृष्ण को नन्द के यहाँ गोकुल में पहुँचा दिया, उसी समय नन्दपत्नी यशोदा के उदर से उत्पन्न कन्या को रातोरात लाकर कंस को समर्पित कर दिया । तत्पश्चात् नियमानुसार कंस ने कन्या को ऊपर उठाकर भूमि पर पटकना चाहा किन्तु वह भूमि पर न गिरकर चण्डिकारूपिणी होकर यह कहती हुई आकाश में चली गयी "नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भसम्भवा । ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी ॥ " - - - - भाग० १० । ४ । १२ । १० । ४ । ९-१० । भागवत में विन्ध्याचलनिवासिनी का उल्लेख नहीं मिलता I वामनपुराण और वाक्पतिराजकृत ‘गौडवहो' नामक प्राकृत महाकाव्य में इसका वर्णन है । - १८ । ७०- इस कथा को १३ । ५२ में देखें । १९।५४ महाभारत शांति पर्व ३८४.३५, स्कन्दपुराणानुसार
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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