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________________ [ 49 ] से बल-बला रहा था । कोई बैल नाथ की रस्सी को पकड़ने पर भी अपने दोनों सीगों को हिलाता हुआ '-तूं करता हुआ पीठ पर काठी को नहीं रहने दे रहा था । सेना के चलने से उड़ी हुई धूलि पर्वतों की चोटियों तक पहुँच रही थी । गजेन्द्रों के द्वारा हिलाये गये वृक्षों की शाखाओं में लगे हुए छत्तों से उड़ी हुई मधु-मक्खियों के काटे जाने के भय से लोग इधर-उधर भाग रहे थे । विशाल सेना के नदी पार करते समय नदी का जल-प्रवाह विपरीत दिशा में बहने लगता था । जब तक हाथियों का समूह नदियों के जल में उतर कर उसे नहीं आलोडित कर पाता था तब तक तुरंगों की खुरों से उड़ी हुई धूल नदियों के जल को पंकिल बना देती थी । हाथी नदियों के तटों को तोड़कर नदी को समतल बना रहे थे । मार्ग में निवास के लिये गाड़े गये तम्बू बड़े-बड़े महलों की शोभा को भी तिरस्कृत कर रहे थे : इस प्रकार वह विशाल सेना नगरों को पार करती हुई यमुना नदी के तट पर आकर रुक गई । पश्चात् नौकाओं द्वारा सैनिकों ने यमुना को पार कर लिया । हाथी-घोड़ों ने भी यमुना को पार कर लिया । कुछ लोग हाथों ही से तैरकर यमुना-पार जा पहुंचे थे । तैरती हुई यादवी-सेना यमुना को दो भागों में बँटी हुई केशराशि की भाँति बना रही थी । इस प्रकार लक्ष्मी के पति भगवान् श्रीकृष्ण की वह विशाल सेना यमुना नदी को तुरन्त ही पारकर उस पार चली गयी । और उसने हस्तिनापुर की ओर प्रस्थान किया । त्रयोदश सर्ग {इस सर्ग में श्रीकृष्ण के दर्शन के लिये उत्सुक इन्द्रप्रस्थ की पुरनारियों का सरस वर्णन अंकित है।) श्री कृष्ण भगवान् के ( अपनी सेना के साथ यमुना पार कर ) आगमन का समाचार ज्ञात कर धर्मराज युधिष्ठिर प्रसन्नता से अपने अनुजों के साथ उनकी अगवानी के लिए द्रुतगति से निकल पड़े । श्रीकृष्ण भगवान् के आगमन के हर्ष से कुरुवंशियों की सेना में नगाड़ों की गम्भीर ध्वनि होने लगी । श्रीकृष्ण भगवान को दर से ही देखकर यधिष्ठिर रथ से पहले उतरना ही चाहते थे, किन्तु श्रीकृष्ण भगवान् त्वरापूर्वक उनसे भी पूर्व रथ से उतर पड़े । श्रीकृष्ण ने अपने गौरव को बढ़ाते हुए अपनी बुआ के पुत्र युधिष्ठिर को दण्डवत् प्रणाम किया । और युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण भगवान् का आलिङ्गन किया ,। तदनन्तर श्रीकृष्ण ने भीम आदि का तथा यादवों ने पाण्डवों का आलिंगन किया, तत्पश्चात् यादव-रमणियाँ और पाण्डव-रमणियाँ एक दूसरे का आलिंगन करने लगी । इस प्रकार एक-दूसरे से मिलने के पश्चात् युधिष्ठिर के अनुनय-विनय करने पर अर्जुन से अपना हाथ मिलाये हुए, भगवान् श्रीकृष्ण युधिष्ठिर के रथ पर चढ़ गये । धर्मराज स्वयं ही रथ हाँकने लगे, भीमसेन चामर डुलाने लगे, अर्जुन ने श्वेतछत्र हाथ में ग्रहण किया और नकुल-सहदेव अनुचर बनकर पार्श्व में खड़े हो गये । इस प्रकार रथ चल पड़ने पर सेना की दुन्दुभियाँ बजने लगी । यादव और पाण्डवों की सेनाएँ गंगा और यमुना के जल-प्रवाह शि० भू०4
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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