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________________ [ 27 ] नारद श्रीकृष्ण को इन्द्र का सन्देश सुनते हैं । माघ के द्वितीय सर्ग में बलराम, श्रीकृष्ण और उद्धव के मध्य राजनीति विषय की बातें होती हैं, रैवतक का वर्णन यमक में किया गया है । माघ का १९ वाँ सर्ग चित्रकाव्य जैसा है । माघ के चतुर्थ सर्ग में विविध छन्दों का प्रयोग किया गया है । इसमें वनेचर - युधिष्ठिर को दुर्योधन, सम्बन्धी समाचार देता है । इसमें भी द्वितीय सर्ग में युधिष्ठिर, भीम और द्रौपदी के मध्य राजनीति विषयक बातें होती है । हिमालय का वर्णन यमक में है । किरात का १५वाँ सर्ग चित्रकाव्य जैसा - है । किरात के भी चतुर्थ सर्ग में विविध छन्दों का प्रयोग किया गया है । इसके अतिरिक्त दोनों काव्यों में वर्ण्य विषय एक जैसे हैं जैसे शत्रुवर्णन, राजनीति - वर्णन, प्रवास वर्णन, पुष्पावचय- वर्णन, जलक्रीड़ा वर्णन, सायं तथा रात्रिवर्णन, सुरतक्रीड़ा–वर्णन आदि । इस प्रकार दोनो काव्यों में समता होने पर भी सहृदय पाठक के सामने भारवि को हीन समझते हैं 'तावत् भा भारवेर्भाति यावन्माघस्य नोदयः' माघ पर - भट्टि के व्याकरण विषयक प्रभाव को सिद्ध करने के पूर्व हमें यह समझ लेना चाहिये कि माघ स्वयं महा वैयाकरण थे । इसका प्रमाण काव्य में यत्र-तत्र अंकित व्याकरण के सूक्ष्म नियमों को देखने से मिल जाता है । सामान्यभूते लुड्. यङ्– लुगन्त क्रियापद, तथा अन्य पाणिनि संमत प्रयोगों का मोह माघ को भट्टि से मिला है, ऐसा कहने में भी हमें संकोच होता । क्योंकि भट्टि की तरह व्याकरण के सूत्रों का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए वे नहीं बैठे थे और न श्रीहर्ष की तरह जटिल शब्दों को ढूंढ-ढूँढकर पदों में पच्चीकारी करने का ही उन्हें व्यसन था, किन्तु यह कहा जा सकता है कि काव्य में माघ ने जितने नवीन शब्दों का प्रयोग किया है, वह केवल व्याकरण के सूक्ष्म नियमों के ज्ञान के कारण ही हो सका है, इतना अन्य कवि से नहीं बन पड़ा है । प्रदान उत्तरवर्ती काव्यों पर माघ का प्रभाव इस प्रकार हमने देखा कि माघ ने शिशुपालवध' में 'किरातार्जुनीय' की पद्धति को अपनाया ही नहीं, अपितु अलंकृति और विद्वत्ता- प्रदर्शन में उससे आगे निकल जाने का प्रयास भी किया है ( यह प्रयास क्यों किया, इसे हमने पूर्व में कह दिया है ) परिणामत: उत्तरवर्ती काव्यों में कृत्रिमता बढ़ती ही गई है । अब कालिदास की भावतरलता या भावनोत्कटता, भारवि की विचार प्रवणता और माघ का पाण्डित्यपूर्ण कल्पनाविलास,
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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