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________________ [ 25 ] 'कहाँ तो स्त्रियों के द्वारा सहन करने लायक नख, कहाँ पर्वत की शिला सदृश बृहदाकार हिरण्यकशिपुका वक्षःस्थल ? ( आश्चर्य है ) देवताओं की नीति को तो देखो कि उन नखों से नृसिंह ने उसे विदीर्ण कर दिया ।' उक्त पद्यों के भावों में साम्यता होने पर भी माघ के प्रस्तुत करने के अभिनव ढंग ने और उसकी ध्वन्यात्मकता ने उसी भाव को 'अनाघ्रातं पुष्पं किसलयमलून'..... आदि की तरह अस्पृष्ट बना दिया है । माघ कवि की सहृदयता, काव्य कशलता तथा भावों को प्रस्तुत करने की मौलिकता का इससे बढ़कर क्या प्रमाण चाहिये ? माघ का एकादशसर्ग तो वास्तव में एक अनूठा सर्ग है, जिसमें माघ के कवि ने प्रौढोक्ति-कुशलता, तथा स्वभावोक्ति की अपूर्व चित्रोपमता को एक साथ अंकित कर अपनी सहृदयता तथा सूक्ष्म निरीक्षण क्षमता को बड़ी कुशलता से प्रदर्शित किया है । यह तो हुई मौलिकता की बात, अब माघ को उपलब्ध पूर्ववर्ती कवियों के दाय पर कुछ विचार किया जाय । विद्वानों के अनुसार कालिदास की कविता का प्रभाव माघ के कई वर्णनों पर, विशेषरूप से माघ के एकादश तथा त्रयोदश सर्ग पर स्पष्टरूप से परिलक्षित होता है । माघकृत प्रभात वर्णन और कालिदास के प्रभात वर्णन में प्रधान अन्तर यह है कि माघ का वर्णन अधिक विस्तृत और अलंकृत है, जबकि कालिदास का संक्षिप्त और अधिक मार्मिक बन पड़ा है । माघ के त्रयोदश सर्ग का पुरसुन्दरियों का वर्णन भी कालिदास के ( कुमारसंभव और रघुवंश ) शिव तथा अज को देखने के लिये उत्सुक रमणियों के वर्णन से प्रभावित है । कालिदास का यह वर्णन सरल, और वर्ण्यविषय को अंकित करने वाला है, जबकि माघ का वर्णन पौराणिक सन्दर्भ को गर्भित रखने से विशेष अलंकृत है । पुरसुन्दरियों के दोनों कवियों के वर्णन एक से चित्र को अंकित करने वाले होने पर भी कालिदास का वर्णन व्यंजना प्रधान है और माघ का अधिक विलासमय है (रघुवंश - ७.९ माघ- १३। ४४ ) माघ के वर्णन कहीं-कहीं अधिक श्रृंगारिक और विलासमय होने से अरुचिकर हो जाते हैं, जैसे - १३.३९, ४१, ४२ आदि । यहाँ यह उल्लेखनीय है कि - इस प्रकार के वर्णन, जिन्हें काव्यरूढ़ियों के नाम से अभिहित किया जाता है और आर्षकाव्य से लेकर श्रीहर्ष तक के काव्यों में पाये जाते हैं । वे हमारे विचार में, कालिदास की देन नहीं है, अपितु काव्य शास्त्रों द्वारा निर्दिष्ट वस्तुव्यापार की देन हैं । क्योंकि काव्यशास्त्रों के नियम पूर्ववर्ती आर्ष आदि काव्य रामायण और पुराण साहित्य ( भागवत पुराण ) के वर्णनों को दृष्टि में रखकर ही निर्मित हैं । १. श्रीमदभागवत ऐसा महापुराण है जिसमें काव्यात्मकता पर्याप्त मात्रा में वर्तमान है । विन्टरनित्स का कहना है कि भाषा, शैली, छन्द और कथा की अन्विति, सभी दृष्टियों से भागवत एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक रचना है । इस पुराण ने रामायण-महाभारत की भाँति लोकप्रियता प्राप्त की है और परवर्ती साहित्य को दूर तक प्रभावित किया है । - (* आगे पृष्ठ-२० पर देखें)
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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