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________________ १२८ शिशुपालवधम् अन्वयः-अनारभमाणस्य अपि विभोः परैः उत्पादिताः अर्थाः, विहायसः शब्दाः इव गुणतां प्रजन्ति ॥ ९१ ॥ हिन्दी अनुवाद-शक्तिशाली पराक्रमी राजा की प्रभुता के कारण लोग उसके दूतों या अन्य राजाओं के द्वारा सम्पादित कार्यों को राजा के ही कार्य समझते हैं, यद्यपि राजा स्वयं कुछ भी करता नहीं। जैसे व्यापक आकाश कुछ भी करता नहीं, वह केवल विभु मात्र है। इसलिये भेरी आदि के शब्द आकाश के ही गुण कहे जाते हैं ॥ ९१ ॥ विशेष-नैय्यायिक आदि दार्शनिक आकाश को विभु एवं शब्द गुण वाला मानते है 'शब्दगुणक्रमाकाशम्' ( तर्कभाषा)। आकाश में एक मात्र विशेष गुण शब्द ही है। प्रकृत प्रसङ्ग में कवि माघ ने दार्शनिक प्रतिभा का परिचय दिया है। कवि का तात्पर्य यह है कि विभु अर्थात् सर्व-व्यापी राजा कुछ भी न करते हुए अन्यान्य राजाओं के द्वारा सम्पादित कार्यों का समावेशन स्वयं में कर लेते हैं, ठीक उसी प्रकार जैसे शंख भेरी द्वारा उत्पन्न शब्द, विभु-निष्क्रिय आकाश में उत्पन्न शब्द माने जाते हैं । इस हेतु राजा को सर्वव्यापी होना आवश्यक है ॥११॥ प्रसङ्ग --- उद्धवजी अब तेजस्विता के महत्व का प्रतिपादन करते हैं यातव्यपाणिग्राहादिमालायामधिकातिः । एकार्थतन्तुप्रोतायां नायको नायकायते ॥ ९२ ॥ यातव्येति ॥ किञ्च एकार्थ एकप्रयोजनं स एव तन्तुः सूत्रं तत्र प्रोतायाम् एकाभीष्टाभिलाषिण्यामित्यर्थः । प्रपूर्वाद्वेषः कर्मणि क्तः । 'वचिस्वपि ( ६।१।१५) इत्यादिना सम्प्रसारणम् । यातव्योऽभिषेणयितव्योऽरिः पाणिं गृह्णातीति पाणिग्राहः पृष्ठानुधावी । कर्मण्यण । तावादी येषां ते पूर्वोक्ताः पङ्क्तिशः स्थितास्तएव माला रत्नमालिका तस्यामधिकातिमहातेजा नायकः शक्तिसम्पन्नो जिगीषु यकायते मध्यमणिरिवाचरति । स्वयमेव सर्वोत्कर्षेण वर्तते इत्यर्थः । तस्माद्विमृष्य कर्तव्यमिति भावः । 'नायको नेतरि श्रेष्ठे हारमध्यमणावपि' इति विश्वः । 'उपमानादाचारे' ( ३।१।१० ) इति क्यङ् । 'अकृत्सार्वधातुक' (७४।२५) इति दीर्घः। नायकायते इत्युपमा, अन्यथाऽनुशासनविरोधात् । एकार्थतन्त्वित्यत्र तु रूपकम् । अधिष्ठानतिरोधानेनारोप्यमाणतन्तुत्वस्यवोद्भटत्वात्प्रोतत्वसिद्धेस्तदेव युक्तम् । तबलात्पाणिप्राहादिमालायामित्यत्रापि रूपकमेव । तदनुप्राणिता चेयमुपमेत्यङ्गाङ्गिभावेन तयोः सङ्करः ॥ ६२ ॥ ___ अन्वयः-एकार्थतन्तुप्रोतायाम् यातव्य पाणिग्राहादिमालार्याम् अधिकद्युतिः नायकः नायकायते ॥ ९२ ॥
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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