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________________ शिशुपालवधम् विशेष-कविभाघ ने बौद्धदर्शनशास्त्र का अच्छा अध्ययन किया था। उक्त श्लोक में बौद्धदर्शन का उल्लेख है। बौद्ध दर्शन शरीर में आत्मा नाम की कोई वस्तु स्वीकार नहीं करता। वह शरीर में पांच स्कन्धों की स्थिति मानता है। वे स्कन्ध ये हैं-(१) रूपस्कन्ध, (२) वेदना स्कन्ध (३) विज्ञान स्कन्ध (४) संज्ञा स्कन्ध और (५) संस्कार स्कन्ध । इस जगत् में दृश्यमान सभी वस्तुओं का आकार रूपस्कन्ध है । धाराप्रवाहरूप ज्ञान विज्ञानस्कन्ध है। चैतन्य अथवा वस्तुसमूह का नाम संज्ञास्कन्ध है। नित्त पर पड़ी हुई छाया का नाम संस्कारस्कन्ध है। उक्त पांचों स्कन्धों के अतिरिक्त जिस प्रकार शरीर में आरमा नाम की कोई वस्तु बौद्धों के लिए नहीं है, उसी प्रकार राजाओं के लिए पंचाङ्ग युक्त मन्त्र के अतिरिक्त किसी भी कार्य में कोई अन्य मन्त्र नहीं है। आचार्य कामन्दक के अनुसार पंचांग मन्त्र ये हैं-"सहायाः साधनोपाया विभागो देशकालयोः । विपत्तेश्च प्रतीकारः सिद्धिः पञ्चाङ्गमिप्यते ॥" ११-५६ इति ॥ - प्रसङ्ग-बलराम जी अपने मत का तिपादन करते हुए कहते हैं कि मन्त्रणा के पश्चात् उसे कार्य में तत्काल परिणत करना चाहिये, क्रिया में विलम्प करना अहितकर होता है। षड्गुणाः शक्तयस्तिस्रः सिद्धयश्चोदयस्त्रयः॥ ग्रन्थानधीत्य व्याकर्तुमिति दुर्मेधसोऽप्यलम् ।। २७ ।। पडिति ॥ दुष्टा मेधा येषां ते दुर्मेधसः मन्दबुद्धयोऽपि । 'नित्यमसिच्प्रजामेधयोः (५।४।१२२)इति समासान्तोऽसिच्प्रत्ययः । ग्रन्थानौशनसादीन् अधीत्य पठित्वा, 'गुणः सन्धिविग्रहयानासनद्वैधीभावसमाश्रयाख्याः षट् । शक्तयः प्रभुत्वमन्त्रोत्साहाख्यास्तिनः । सिद्धयः पूर्वोक्तशक्तित्रयसाध्याः पुरुषार्थलाभात्मिकाः । ताश्च तिस्रः प्रभुसिद्धिमन्त्रसिद्धिरुत्साहसिद्धिश्चेति । उदयाः वुद्धिक्षयस्थानानि छत्रिन्यायेनोदया उच्यन्ते । तत्र वृद्धिक्षयो स्वशक्तिसिद्धयोः पूर्वावस्थानादुपचयापचयो स्थानं ते च त्रयः इति व्याकर्तुं व्याख्यातुमलं समर्थाः । 'पर्याप्तवचनेष्वलमर्थेषु' (३।४।६६) इति तुमुन् । पञ्चाङ्गनिर्णयशक्तिविकलानां सन्ध्यादिरूपसंख्यामात्रपाठकानामशास्रज्ञत्वादुद्धवादयो न ग्राह्य वचना इत्यभिसन्धिः। अत्रामर: 'संधिर्ना विग्रहो यानमासनं द्वैधमाश्रया । षड्गुणाः शक्तयस्तिस्रः प्रभावोत्साहमंत्रजाः ।। क्षयः स्थान च वृद्धिश्च त्रिवर्गो नीतिवेदिनाम् ॥ इति । तत्रारिविजिगीष्वोर्व्यवस्थाकरणमैक्यं सन्धिः । विरोधो विग्रहः । विजिगीषोररिं प्रति यात्रा यानम् । तयोमिथः प्रतिबद्धशक्तयोः कालप्रतीक्षया
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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