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________________ ७६ शिशुपालवधम् ___ अन्वयः-सन्ध्यारुणव्योमस्फुरत्तारानुकारिणीः विषद्वेषोपरक्ताङ्गसङ्गिनीः स्वेदविपुषः दधत् (रामः जगाद)॥१८।। हिन्दी अनुवाद-सायंकालीन लाल आकाश में चमकते तारागणों की तरह शत्रु पर (शिशुपाल पर ) किये क्रोध से लालशरीर पर उत्पन्न पसीने की बिन्दुओं को धारण करते हुए, (बलराम बोले )। प्रसङ्ग-प्रस्तुत श्लोक में बलरामजी के कुण्डलों में जटित पद्मराग मणियों की कान्ति का वर्णन किया गया है। प्रोल्लसत्कुण्डलप्रोतपद्मरागदलत्विषा ॥ कृष्णोत्तरासगरुचं विदधच्चूतपल्लवीम्' ॥ १९ ॥ प्रोल्लसदिति ॥ पुनः । प्रकर्षेणोल्लसतां कुण्डलयोः प्रोतानां स्यूतानां पद्मरागदलानां माणिक्यशकलानां त्विषा कान्त्या। प्रोतेति प्रपूर्वाद्वजः कर्मणि क्तः । यजादित्वात्सम्प्रसारणम् । कृष्पत्तरासङ्गो नीलोतरीयम् । 'दो प्रावारोत्तरासङ्गो समौ बृहतिका तथा। संव्यानमुत्तरीय च-' इत्यमरः । तस्य रुचं चूतपल्लवस्येमा चौतपल्लवीं विदधत् । कृष्णलोहितमिश्र वर्णचूतपल्लववद् धूम्रांकुवन्नित्यर्थः 'धूम्रधूमलो कृष्णलोहिते' इत्यमरवचनात् । पत्रान्यरुचोऽन्यदीयत्वायोगात्सादृश्याक्षेपान्निदर्शनालङ्कारः ॥ १६ ॥ अन्वयः-प्रोल्लसत्कुण्डलप्रोतपद्मरागदलस्विषा कृष्णोत्तरासगरुचं चौतपल्लवीं विदधत् ॥ १९ ॥ (रामो जगाद) हिन्दी अनुवाद-अत्यधिक चमकते हुए कुण्डलों में जड़े हुए पद्मराग मणियों के टुकड़ों की (लाल) कान्ति से ( धारण किये हुए अपने ) नोले दुपट्टे के वर्ण को आम्रपरलव के समान अर्थात् धूम्र वर्ण का करते हुए, (बलरामजी बोले)॥ १९ ॥ प्रसङ्ग-प्रस्तुत श्लोक में रेवती के मुख-संसर्ग से सुवासित मदिरा-सौरभ का वर्णन किया गया है। ककुमिकन्यावक्त्रान्तर्वासलब्धाधिवासया ॥ मुखामोदं मदिरया कृतानन्याधमुद्वमन् ॥ २० ।। ककुद्मीति ।। पुनः । कुकुद्मिकन्याया रेवत्या बक्त्रस्थान्तरभ्यन्तरे वासेन स्थित्या लब्धोऽधिवासो वासना यया तया। तन्मुखसौरभवासितयेत्यर्थः संस्कारो गन्ध १. चूतपल्लवीम् ।
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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