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________________ ६४ शिशुपालवधम् अभियान करने के लिए तत्पर श्रीकृष्ण (परस्पर विरोधी) दो कार्यों ( के एक ही समय पर उपस्थित होने ) से व्याकुल थे ॥१॥ (नारदमुनि के द्वारा इन्द्र का सन्देश सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण ने शिशुपाल पर चढ़ाई करने का निश्चय किया, उसी समय धर्मराज युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ में पधारने के लिये निमंत्रण भी मिला--इस तरह परस्पर विरुद्ध दोनों आवश्यक कार्यों के एक ही समय उपस्थित होने से भगवान् श्रीकृष्ण बड़ी चिन्ता में पड़ गये ॥३॥) प्रसङ्ग-उपर्युक्त विषम विषय पर विचार करने के लिये श्रीकृष्ण, उद्धव और बलदेवजी के साथ मंत्रणागृह में जाते हैं-- गुरुकाव्यानुगां विभ्रश्चान्द्रीमभिनभः श्रियम् ॥ सार्धमुद्धवसीरिभ्यामथाऽसावासदत्सदः ॥२॥ एवं मन्त्रबीजसन्देहमुपन्यस्य मन्त्रोचितं देशमाह___ सामिति ॥ अथ सन्देहानन्तरमसो हरिः अभिनभः । पूर्वपदव्ययीभावः। कर्मप्रवचनीयत्वे वा द्वितीया । गुरुकाव्यो वृहस्पतिशुक्रावनुगावनुयायिनो यस्यां ताम् । 'गीष्पतिधिषणो गुरुः' इति, 'शुक्रो दैत्यगुरुः काव्यः' इति चामरः। चन्द्रस्येमां चांद्रीं श्रियं बिभ्रत् । अत्र श्रीतुल्यां श्रियमिति निदर्शनाभेदः । उद्धवसीरिभ्यां सार्धमुद्धवरामाभ्यां सह सदः सभामासददगमत् । राजसदसः प्रासादत्वादिति भावः । सदेर्लुडि 'पुषादि-' (३।११५५) इति च्लेरङादेशः । अत्र मनुः 'गिरिपृष्ठ समारुह्य प्रासादं वा रहो गतः। अरण्ये निःशलाके वा मन्त्रयेद्भावभा विनो' ॥ (७।१७४) इति ॥२॥ अन्वयः-अथ असौ अभिनभः गुरुकाव्यानुगां चान्द्रीं श्रियं विभ्रत् उद्धवसीरिभ्यां साद्ध सदः आसदत् ॥ २॥ हिन्दी अनुवाद-इस ( परस्पर विरुद्ध दो कार्यों के एक साथ उपस्थित हो जाने के कारण, श्रीकृष्ण के व्याकुल होने) के पश्चात् उपस्थित विषयपर विचार करने के लिये उद्धव और बलदेव के साथ श्रीकृष्ण मंत्रणा गृह में भाये, उस समय भगवान् श्रीकृष्ण की शोभा आकाश में गुरु और शुक्र के सहित चन्द्रमा की-सी प्रतीत हो रही थी॥२॥ विशेष-मन्त्रणा स्थल के विषय में मनुने कहा है-"गिरिपृष्ठं समारुह्य प्रासादं वा रहोगतः । अरण्ये निःशलाके वा मन्त्रयेद्भावभाविनौ ॥" (मनुः ७।१७४) १, व्याख्यान्तरे च श्लोकोऽयं पूर्वोत्तरार्धन्यत्यासेन पठितः ।
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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