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________________ प्रथमः सर्गः प्रस्तुतकगोचरत्वेनोभयश्लेषेऽपि विशेष्यश्लेषासम्भवादुलकविषयशब्दशक्तिमूलो ध्वनिः । सहस्ररश्मेरिवेत्युपमाननिर्वाहकत्वाद्वाच्यसिद्धयङ्गम् ।। ५३ ।। अन्धयः-अधीरलोचनः कौशिकः सहस्ररश्मः इव यस्य दर्शनं सोढुम् अशक्नुवन् हेमाद्रिगुहागृहान्तरं प्रविश्य बिभ्यत् दिवसानि निनाय ॥ ५३ ॥ हिन्दी अनुवाद-चञ्चल नेत्रों वाले इन्द्रने ( उल्लूने ) सूर्य के सदृश (अत्यन्त तेजस्वी ) जिस ( रावण ) का दर्शन सहन करने में असमर्थ होते हुए, हिमालय की गुफा रूपी घर के भीतर प्रविष्ट होकर डरते हुए, दिन व्यतीत किये ॥ ५३ ॥ प्रसन-प्रस्तुत श्लोक में रावण के कठोर कंठ के छेदन में विष्णु के चक्र की विफलता वर्णित की गई है। वृहच्छिलानिष्ठुरकण्ठघट्टनाद्विकीर्णलोलाग्निकणं सुरद्विषाम्॥ जगत्प्रभोरप्रसहिष्णु वैष्णवं न चक्रमस्याक्रमताधिकन्धरम् ।। ५४ ।। वृहच्छिलेति । बृहति शिलेव निष्ठुरे कण्ठे घट्टनादभिघाताद्विकीर्णा विक्षिप्ताः लोलावाग्निकणाः स्फुलिङ्गा यस्य तत्। अत एवाप्रसहिष्णु अनभिभावकम् । प्रसहनमभिभव इति वृत्तिकारः । 'अलंकृञ्-' ( ३।२।१३६ ) इत्यादिना इष्णुच् । वैष्णवं चक्रं सुदर्शनं जगत्प्रभोः सकललोकैकस्वामिनः अस्य सुरद्विषो रावणस्य कन्धरायामधि अधिकन्धरमधिग्रीवम् । विभक्त्यर्थेऽव्ययीभावः । 'अव्ययीभावश्च' ( २।४।१८ ) इति नपंसकत्वात् 'ह्रस्वो नपुंसके प्रातिपदिकस्य' (१।२।४७ ) इति ह्रस्वत्वम् । 'कण्ठो गलोऽय ग्रीवायां शिरोधिः कन्धरेत्यपि' इत्यमरः। नाक्रमताप्रतिहतं न क्रमते स्म । न प्रवर्ततेस्म । किन्तु प्रतिहतमेवेत्यर्थः । 'वृत्तिसर्गतायनेषु क्रमः' (१।३।३८ ) इति वृत्तावात्मनेपदम् । वृत्तिरप्रतिबन्धः ।। ५४ ॥ _ अन्वयः-वृहच्छिलानिष्ठुरकण्ठघट्टनात् विकीर्णलोलाग्निकणम् अप्रसहिष्णु वैष्णवं चक्रं जगत्प्रभोः अस्य सुरद्विषः अधिकन्धरं न अक्रमत । हिन्दी अनुवाद--विशाल चट्टान के समान कठोर (रावण के ) कण्ठ से टक्कर लगने से उत्पन्न चञ्चल चिनगारियों वाला अजेय, विष्णु का चक्र लोकाधिपति इस देवशत्रु की गर्दन पर आक्रमण नहीं कर सका ॥ ५४॥ (भगवान् विष्णु ने रावण को मारने के लिये अपना सुदर्शन चक्र छोड़ा, किन्तु पत्थर की तरह अत्यन्त कठोर रावग के गले से उसके टकराने पर केवल अग्नि के कण चारों ओर छिटक गये, उससे रावण का गला नहीं कर सका।) प्रसङ्ग-प्रस्तुत श्लोक में कविमाघ ने कुबेर को प्रकम्पित करने का वर्णन किया है। १. ० द्विकीर्ण ... द्विषः ।
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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