SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८ शिशुपालवधम् धारी और पूर्ण चन्द्र के लान्छन के समान कान्तिवाले श्याम वर्ण के ( श्रीकृष्ण ) वाढवा की ज्वालाओं से व्याप्त समुद्र के समान सुशोभित हुए ॥ २० ॥ ( पीताम्बर धारण किये श्याम वर्ण श्रीकृष्ण वाडवानि की ( पीली ) ज्वाला से युक्त समुद्र की शोभा को प्राप्त हुए । ) विशेष- ब्रह्माण्ड पुराण २, १८, ८० ३७२, १७, मत्स्य. २, ५, वायु. ४७, ७६, पुराण के अनुसार — क्षत्रियों के अत्याचार से पीड़ित एक भृगुवंशी अपने गर्भ की रक्षा हेतु पहाड़ों की कन्दरामें जा छिपी, पर क्षत्रियों ने इसका वह भी पीछा किया। भयवश वह भागी और भागते समय ऊरू से एक तेजस्वा पुत्र हुआ, अतः इसका नाम 'और्व' पड़ा। इन्होंने क्रोधवश सम्पूर्ण पृथ्वी को भस्म करना चाहा, पर पूर्वजों ने इन्हें रोका तब इन्होंने अपने क्रोध को समुद्र में डाल दिया । इसी कारण बडवानल को 'और्वानल' भी कहते 11 ( श्लोक १।२० ) प्रसङ्ग — इस श्लोक में कवि माघ श्यामवर्ण श्रीकृष्ण की और गोरवर्ण नारद की मिश्रित शोभा का वर्णन करते हैं । रथाङ्गपाणेः पटलेन रोचिषामृषित्विष संवलिता विरेजिरे । चलत्पलाशान्तरगोचरास्तरोस्तुषारमूर्तरिय नक्तमंशवः ॥ २१ ॥ रथाङ्गपाणेरिति । रथाङ्गं चक्रं पाणौ यस्य तस्य हरेः । 'प्रहरणार्थेभ्यः परे निष्ठा सप्तम्यौ भवतः' इति पाणेः परनिपातः । रोचिषां छवीनां पटलेन समूहेन संवलितामिलिता ऋपित्विषो नक्तं रात्रौ । सप्तम्यर्थेऽव्ययम् । तरोश्चलतां पलाशानां पत्राणामन्तराणि गोचर आश्रयो येषां ते, तुषारा मूर्तिर्यस्य तस्येन्दोरंशव इव विरोजिरे चकाशिरे ।। २१ ।। अन्वयः - रथाङ्गपाणेः रोचिषां पटलेन संवलिताः ऋषित्विषः नक्तं तरो चलत्पलाशान्तगोचराः तुषारमूर्ते अंशवः इव विरेजिरे ।। २१ ।। हिन्दी अनुवाद - सुदर्शन चक्रधारी ( श्रीकृष्ण ) के प्रभा-पुन्ज से मिली हुई मुनि की ( शुभ्रवर्ण) छवि - किरणें रात्रि में हिलते हुऐ पत्तो के मध्य से आनेवाली चन्द्र-किरणों की तरह सुशोभित हुई ।। २१ ।। ( चन्द्रमा का रात में वृक्षों के पत्तों के मध्य से नीचे गिरा हुआ प्रकाश और पत्तों की काली छाया परस्पर मिल जाने से जैसे चितकबरी शोभा उत्पन्न होती है, उसी प्रकार श्रीकृष्ण के श्याम वर्ण के तेज से नारद मुनि का शुभ्र तेज मिलकर सुशोभित हुआ ।। २१॥ प्रसङ्ग — इस श्लोक में कवि माघ श्रीकृष्ण और नारद मुनि के श्यामल और शुभ्र वर्ण के किरणों के सम्मिश्रण से होनेवाले एकवर्णत्व का वर्णन करते हैं ।
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy