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________________ नैषधमहाकाव्यम् अयं दरिद्रो भवितेति वेधसों लिपि ललाटेऽथिजनस्य जाग्रतीम् । मृषा न चक्रेऽल्पितकल्पपादपः प्रणीय दारिद्रयदरिद्रतां नृपः ॥१५॥ जीवातु-अस्य वदान्यतां द्वाभ्यां वर्णयति-अयमिति विभज्येति च। अल्पितः अल्पीकृतः निजित इति यावत्, दानशौण्डत्वादिति भावः, कल्पपादप अल्पतरुः वाञ्छितफलप्रदवृक्ष इति यावत्, येन तथाभूतः स नृपः दारिद्रयस्य अभावस्य निर्घनत्वस्य इति यावत्, दरिद्रताम् अभावमिति यावत्, प्रणीय कृत्वा दरिद्रेभ्यः प्रभूतघनदानेन तेषां दारिद्रयम् अपनीयेति भावः । अयं दरिद्रः अभाववानिति यावत्, भविता इति अथिजनस्य याचकजनस्य ललाटे जाग्रतीं दीप्यमानामिति यावत्, वेधसः इयं वैषसी तां लिपि मृषा मिथ्या न चक्रे न कृतवान् । विधातुलिपी सामान्यतः दरिद्रशब्दस्य स्थिती दरिद्रशब्दस्य यथायथं धनदरिद्रः, पापदरिद्रः, ज्ञानदरिद्र इत्यादिप्रयोगदर्शनात् अभावमात्रबोधकत्वमङ्गीकृत्य राजा दरिद्राणां धनाभावरूपं दारिद्रयमपाचकार इति निष्कर्षः ॥ १५ ।। । अन्वयः-अल्पितकल्पपादपः नृपः दारिद्रयदरिद्रतां प्रणीय 'अयं दरिद्रः भविता'-इति अर्थिजनस्य ललाटे जाग्रती वैधसी लिपि मषा न चक्रे । हिन्दी-कल्पवृक्ष को भी ( स्वदानशीलताधिक्य से , छोटा बना देनेवाले उस राजा ने दारिद्रय को भी दरिद्र बनाकर 'यह दरिद्र होगा'-इस याचकों के ललाट पर जागती-दीपती विधाता की लिपि को झूठो नहीं किया । टिप्पणी-कल्पवृक्ष याचक को देता है, किन्तु नल अयाचकों को भी देता था, इस प्रकार उसके सम्मुख कल्पवृक्ष भी छोटा पड़ गया और इस प्रकार दरिद्रों के माल पर विधाता को लिखी लिपि झूठी नहीं पड़ी, माल पर लिखी दरिद्रता ही दरिद्र बन गयी मिटकर । अथवा 'काकु' मानकर यह अर्थ भी हो सकता है कि विधि-लेख को प्रभूतदान के द्वारा झूठा कर दिया। भाव यह है राजा नल इतना दानी था कि भूमण्डल पर दरिद्रता का नाम भी नहीं रह गया था। इस तथा अगले पद्य में भी राजा को दानशीलता का वर्णन किया गया है ॥१५॥ विभज्य मेरुन यथिसात्कृतो न सिन्धुरुत्सर्गजलव्ययैर्मरुः । अमानि तत्तेन निजायशोयुगं द्विफालबद्धाश्चिकुराश्शिरस्स्थितम्॥१६॥ जीवातु-विभज्येति । मेरुः हेमाद्रिः विभज्य विभक्तीकृत्य अथिसात् अथिभ्यो देयः न कृतः अथिने देयमिति 'देये त्रा चेति सातिप्रत्ययः। सिन्धुः समुद्रः
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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