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________________ नैषधमहाकाव्यम् ___ जीवातु-प्रतीपेति । प्रतीपा: प्रतिकूलाः भूपा राजानः तैः विरुद्धधर्मः असमानाधिकरणधर्मः विपरीतवृत्तिमिरित्यर्थी, अपि ततः नलात् भिया भयेनेव हेतुना भेतृता स्वाश्रयभेदकत्वं परोपजाप इत्यर्थः । उज्झिता त्यक्ता किम् ? यद् यस्मात् स नलः ओजसा तेजसा अमित्रान् शत्रून् जयतीति तथोक्तः मित्रं सूर्य जयतीति तथाभूतः । अत्र यः खलु अमित्रजिन् स कथं मित्रजिदिति विरोधाभासः, परिहारस्तु पूर्वमुक्तः । तथा विचारेण पश्यतीति विचारदृक् चारैः गूढपुरुषः पश्यतीति चारदृक् । 'राजानश्चारचक्षुष' इति, 'चारैः पश्यन्ति राजान' इति च नीतिशास्त्रम् । अत्रापि यो विचारदृक् स कथं चारदृग् भवतीति विरोधाभासः, परिहारस्तु पूर्वमुक्तः । अवर्तत आसीत् । अपि विरोधे । सूर्यतेजसं चारदृशञ्च नलं ज्ञात्वा शत्रवो भयात् परस्परोपजातादिवरमावं तत्यजुरिति भावः । अत्र विरोधोत्प्रेक्षयोरङ्गाङ्गिभावः ॥ १३ ॥ अन्वयः-किं भिया प्रतीपभूपैः इव विरुद्धधर्मैः अपि ततः भेत्तृता उज्झिता? यत् सः ओजसा अमित्रजिद् ( अपि ) मित्रजित्, विचारदृक् अपि अविचारदृक् अवर्तत । हिन्दी-क्या डर से शत्रुनृपों के सदृश परस्पर विरोधी धर्मों ने भी उस ( नल ) से भेद-भाव छोड़ दिया था ? क्योंकि वह अपने तेज के कारण अमित्रजेता (शत्रुजयी ओर सूर्य को न जीतने वाला ) होकर भी मित्रता ( मित्रजयी और सूर्यजयी ) था और विचारदृक् (विवेक अथवा गुप्तचरों के द्वारा सूचना पाने वाला 'चारचक्षु') होकर भो अविचारदृक् ( अविवेकी और अचारचक्षु ) था। टिप्पणी-इस श्लोक में 'विरोध' अलंकार है। अमित्रजित् (सूर्य का अजेता ) होकर भी कोई मित्रजित् ( सूर्यजयी ) कैसे हो सकता है ? विरोध के परिहारार्थ अर्थ हुआ शत्रुओं को जीतने वाला होकर भी तेज से सूर्य का जेता था, अर्थात् सूर्य से भी अधिक तेजस्वी था। इसी प्रकार विचारहक् ( विवेकी ) होकर भी राजा अविचारदृक् ( अविवेकी) कैसे हो सकता है ? परिहारार्थ है, राजा विवेकी था और गुप्तचरों द्वारा प्राप्त समाचारों के आधार पर सारा संसार हस्तामलकवत् प्रत्यक्ष करता था। मल्लिनाथ के अनुसार यहाँ
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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