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________________ नषधमहाकाव्यम् सत्याः प्रतीपभूपालानां प्रतिपक्षनृपतीनां या मृगीदृशः मृगनयनाः कान्ताः तासां दृशः नयनानि न तत्यजुः । नूनं मन्ये इत्यर्थः । उत्प्रेक्षावाचकमिदं, तदुक्तं दर्पणे 'मन्ये शङ्के ध्रुवं प्रायो नूनमित्येवमादयः । उत्प्रेक्षाव्यञ्जका। शब्दा इवशब्दोऽपि तादृश' इति । नलनिहतभर्तृका राजपत्न्यः सततं रुरुदुरिति भावः ॥ ११॥ अन्वयः-तेन अखिले महीतले निरीतिमावं गमिते निवारिताः अतिवृष्टयः अनन्यसंश्रयाः नूनं प्रतीपभूपालमृगीदृशां दृशः न तत्यजुः ।। हिन्दी-उस ( राजा नल ) के द्वारा समस्त पृथ्वीतल के निरीतिभाव ( जहाँ अतिवृष्टि, अनावृष्टि, टिड्डोदल, चूहे, तोते और आक्रांत शत्रुनृप-ये छः ईतियां न रहें ) को प्राप्त करा दिय जान पर प्रतिरोध ( रोक ) प्राप्त अतिवृष्टियों ने अन्यत्र आश्रय न पाकर निश्चय ही शत्रु-राजाओं की मृगनयनाओं के नेत्रों को नहीं तजा (रिपुनारियों की आँखों में सदा को बसेरा कर लिया )। टिप्पणी-भाव यह है कि राजा नल पुण्यात्मा, सदाचरण और महान् पराक्रमी था। न तो उसके कारण इस धरती पर अतिवृष्टि आदि आपदाएं रह गयी थीं और न अन्य राजागण उस पर आक्रमण का हो साहस कर पाते थे, सभी शत्रुओं को उसने पराजित कर दिया था; अतएव अतिवृष्टि आँसुओं के रूप में सदा रिपुनारियों के नेत्रों में जा बसी थी। ___'नूनम्'-इस उत्प्रेक्षाबोधक शब्द से स्पष्ट है कि यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है। 'प्रकाश'-कारने प्रतीपभूपालमृगीदृशाओं के नेत्रों से निरंतर अश्रु प्रवाह के आधार पर यह भाव लेकर कि नल ने सभी दुष्ट भूपालों का विनाश कर दिया, यहाँ 'पर्यायोक्त' अलंकार माना है, क्योंकि गम्य का अन्य प्रकार से कथन पर्यायोक्त है-'गम्यस्यापि भङग्यन्तरेणाख्यानं पर्यायोक्तम् ।' साहित्य विद्याघरी के अनुसार 'अतिवृष्टयः......"न तत्यजुः'-इस कथन के आधार पर यहाँ अतिशयोक्ति है। सितांशुवर्णैवंयति स्म तद्गुणैर्महासिवेम्नस्सहकृत्वरी बहुम् । दिगङ्गनाङ्गाभरणं रणाङ्गणे यशःपटं तद्भटचातुरी तुरी ॥ १२ ॥ जीवातु-सितांश्चिति । महान् असिरेव वेमा वायदण्डः 'पुंसि वेमा
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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