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________________ ( ४६ ) मदनाराधना चलने लगती है । 'नैषध' का अट्ठारहवा सर्ग इसीके शृङ्गार से आप्लावित है। ऋजुता, मधुरता, विनयशीलता आदि दमयन्ती के स्वाभाविक गुणों का विकास नैषध' में निरन्तर दीखता है। दमयन्ती विश्व-काव्य की अविस्मरणी नायिका है, जिसके बाह्याभ्यन्तर शृङ्गार से 'नैषधीय-चरित' मंडित है। ( ३ ) रस-अंगीरस-'नैषधीयचरित' के रचयिता श्रीहर्ष के अनुसार उनका काव्य शृंगारामृतवर्षी शीतकर चन्द्र है-'ऋङ्गारामृतशीतगो' (१॥ १३०)। रति-काम के परिणयोत्सव पर सहस्रधारों में बरसते देव से तुष्टि की कामना करते हुए इस काव्य की कवि ने आशीर्वादात्मक समाप्ति की है। ये रति-काम दमयन्ती नल का और 'सहस्रधारकलशश्रीः' देव श्रीहर्ष के 'मधुवर्षि' नैषध-काव्य का भी यदि संकेत बनजाते हैं तो अनपेक्षित नहीं है। इसमें थोड़ी भी सदेह करने का अवकाय नहीं है कि श्रीहर्ष का 'नैषधीयचरित' शृंगाररसप्रधान उत्कृष्ट महाकाव्य है। इस प्रकार उस शास्त्रीय परम्परा को भी आदर मिल जाता है, जिसके अनुसार महाकाव्य में शृंगार, वीर, शांत में कोई एक प्रधान रस होना चाहिए—'शृङ्गारवीरशांतानामे. कोऽङ्गी रस इष्यते ।' आदि से अन्त तक इस महाकाव्य में शृङ्गाररस अंगी रूप में परिलक्षित होता है। शृंगार-शृंगार के विप्रलंभ और संयोग-दोनों पक्षों का 'नैषध' में सुन्दर चित्रण है। आरम्भ से नल-दमयन्ती-विवाह तक विश्लम है और तदनन्तर संयोग। जहां तक विप्रलंभ-शृंगार का पक्ष है, वह शास्त्रीय अधिक है। इसी परम्परा का पालन करके कवि ने यद्यपि वर्णन पहिले नल का किया है, पर रति-भाव का जागरण पहिले दमयन्ती में दिखाया गया है। मदन प्रवेश पहिले विदर्भजा के मन में हुआ-'विदर्भजाया मदनस्तथा मनोनलावरुद्धं वयसैव वेशितः ।' (नै० १।३२)। नौ श्लोकों (नै० १.३४-४२ ) में कवि ने दमयन्ती के पूर्वानुराग का वर्णन किया है। यह अनुराग नल के गुणों के श्रवण से उत्पन्न हुआ है, बहाने से उसने नल का चित्र-दर्शन पाया और नल के सपने देखने लगी। आगे चलकर यही अनुराग इतना दृढ हुआ कि सब
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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