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________________ ( ३५ ) संभावना यही है कि बाईस सर्ग में ही 'नैषध' पूर्ण है, जितनी भी टीकाएँ प्राप्त हैं, द्वाविंश सर्गात्मिका ही हैं । नैषध : संस्कृत-महाकाव्य-परम्परा का गौरव आदिकवि वाल्मीकि रचित आदि महाकाव्य 'रामायण' से जिस संस्कृतमहाकाव्य-परंपरा का समारंभ हुआ, कालिदास के 'रघुवंश' और 'कुमारसंभव', भारवि के 'किरातार्जुनीय' और माघ के 'शिशुपालवध' से जो पुष्ट हुई, श्रीहर्ष का 'नैषधीयचरित' उस परंपरा का एक गौरव ग्रन्थ है । पुण्यश्लोक निषधनरेश नल के पवित्र चरित्र को आधार बनाकर लिखा गया यह महाकाव्य इस परम्परा की अन्तिम महत्त्वपूर्ण रचना मानी जाती है। कहा तो यहां तक गया है कि नैषध-काव्य के संमुख न माघ कवि का काव्य ठहरता है, न भारवि का-'उदिते नैषवे काव्ये क्व माघः क्व च भारविः ।' भारतोय आचार्य परम्परा में 'काव्यादर्श' के रचयिता दंडी के अनुसार 'सर्गबंध' महाकाव्य कहा जाता है-'सर्गबन्धो महाकाव्यमुच्यते ।' उसके लक्षण उन्होंने इस प्रकार बताये हैं : आशीर्नमस्क्रिया वस्तुनिर्देशो वाऽपि तन्मुखम् । इतिहासकथोद्भूतमन्यद्वापि सदाश्रयम् । चतुर्वर्गफलोपेतं चतुरोदात्तनायकम् । नगरार्णवशैल चन्द्रार्कोदयवर्णनः । उद्यानसलिलक्रीडामधुपानरतोत्सवैः । विप्रलम्भविवाहश्च कुमारोदयवर्णनः । मन्त्रदूतप्रयाणाजिनायकाम्भुदयैरपि । अलकृतमसंक्षिप्तरसभावनिरन्तरम्। सगैरनतिविस्तीर्णैः श्रव्यवृत्तः सुसन्धिभिः । सर्वत्रभिन्नवृत्तान्तरुपेतं लोकरञ्जनम् । काव्यं कल्पोत्तरस्थायि जायेत तदलङ्कृतिः ।। (काव्यादर्श/१४-१९)। अर्थात् महाकाव्य का आरम्भ आशीष, नमस्कार और ( अथवा ) 'वस्तु' के 'निर्देश से होना चाहिए, जिसका आधार कोई ऐतिहासिक कथा हो, यों इतिहासा
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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