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________________ ४२ नैषधमहाकाव्यम् ने स्मित के सितत्व-साम्य के आधार पर वागमतोद्गार की उत्प्रेक्षा मानी है । कदाचित् कुछ टीकाकारों ने इस श्लोक में समासोक्ति मानी है, विद्याधर ने उसका खंडन करते हुए रूपकोत्प्रेक्षालंकार का निर्देश किया है। उनका कथन है कि 'वचोमृतम्' में रूपक है, वह उत्प्रेक्षा का निमित्त है। अर्थान्तर की प्रतीति का कारण रूपक ही है। इससे यहां समासोक्ति नहीं है। चंद्रकलाकार ने श्लिष्टपरंपरितरूपक-उत्प्रेक्षा का अंगांगिभाव संकर माना है ।। ४९ ॥ परिमृज्य भुजाग्रजन्मना पतगोकनदेन नैषधः। मृदु तस्य मुदेऽगिरद् गिरः प्रियवादामृतकूपकण्ठजाः ।। ५० ।। जीवातु--परिमृज्येति । निषघानां राजा नषघः नल: 'जनपदशब्दात क्षत्रियादञ्' । भुजाग्रजन्मना कोकनदेन पाणिशोणपङ्कजेनेत्यर्थः। पतगं हंसं परिमृज्य तस्य हंसस्य तथा मुदे हर्षाय प्रियवादानामेवामृतानां कूपः निधिः कण्ठो वा गिन्द्रियं तज्जन्याः गिरः मृदु यथा तथा अगिरत् प्रियवाक्यामृतैरसिञ्चदित्यर्थः । अत्र भुजाग्रजन्मना कोकनदेनेति विषयस्य पाणेनिगरणेन विपयिणः कोकनदस्यवोपनिबन्धात् अतिशयोक्तिः, 'विषयस्यानुपादानाद्विषय्युपनिबध्यते । यत्र सातिशयोक्तिः स्यात्कविप्रौढोक्तिसम्मता ॥' इति लक्षणात् । साच पाणिकोकनदयोरभेदोक्तिः अभेदरूपा तस्याः प्रियवादामृतकूपकण्ठेति रूपक संसृष्टिः ॥ ५० ॥ अन्वयः-नषधः भुजाग्रजन्मना कोकनदेन पतगं परिमृज्य तस्य मुदे प्रियवादामृतकूपकण्ठजाः गिरः मृदु अगिरत् । हिन्दी-नल ने भजा के अग्रभाग में जन्मे रक्तकमल ( रक्ताभ कर ) से विहंग का संस्पर्श करके उसकी मोद-वृद्धि के निमित्त प्रिय वचन रूप अमृत के कूप स्वरूप कंठ से उत्पन्न वचन धीरे-धीरे कोमलता पूर्वक बोले । टिप्पणी-हंस को कमल प्रिय होता है, राजा ने अपने करकमल से हंस का स्पर्श कर उसके प्रति प्रीति प्रकट को, कमल-भोजन देकर तदनन्त र प्रियवचनरूप सुधा का पान कराया। अतिथिसत्कार । अतिशयोक्ति-रूपक की संसृष्टि ।। ५० ॥
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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