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________________ द्वितीयः सर्गः ३९ ङ्कारः । 'विना सम्बन्धि पत्किञ्चिदत्रान्यत्र परा भवेत् । रम्यताऽम्यता वा स्यात् सा विनोक्तिरनुस्मृते'ति लक्षणात् । तस्याश्च पुष्पमिवेत्युपमया संसृष्टिः । अन्वयः--अवकेशिनः पुष्पम् इव तव इदं रूपं तया विना विफलम्, इयम् ऋद्धधना अवनी वृथा, सम्प्रवदपिका अपि स्ववनी का ? हिन्दी--जैसे अवकेशी ( बांझ वृक्ष ) का फूल ( अथवा 'अवकेशी' अर्थात् केशरहित व्यक्ति द्वारा सिर में लगाया फूल ) विफल अर्थात् फलरहित होता है, वैसे ही यह आपका रूप उसके बिना निष्फल है, यह धनधान्य से समृद्ध धरा व्यर्थ है और कोकिल-कूजन से कूजित आपकी विलास-वाटिका भी क्या है ? ( व्यर्थ है । ) टिप्पणी--आशय यह है कि नल का यह रूप-सौन्दयं, यह समृद्धराज्य, यह हरी-भरी विलास-बाड़ी तभी सार्थक हों, जब 'वह' साथ हो। मल्लिनाथ के अनुसार विनोक्ति-उपमा की संसृष्टि, विद्याधर ने छेकानुप्रास, विनोक्ति, दीपक और उपमा अलंकारों का निर्देश किया है ॥ ४५ ॥ अनयाऽमरकाम्यमानया सह योगः सुलभस्तु न त्वया। घनसंवृतयाऽम्बुदागमे कुमुदेनेव निशाकरत्विषा ।। ४६ ॥ जीवातु-अत्रान्यापेक्षा दर्शयितु तस्या दौर्लभ्यमाह--अनयेति । अमरैरिन्द्रादिभिः काम्यमानयाऽभिलप्यमाणया दमयन्त्या सह योगः अम्बुदागमे घनसंवृतया मेघावृतया निशाकरत्विषा सह योगः कुमुदेनेव त्वया न सुलभो दुर्लभ इत्यर्थः । अत्र तत्संयोगदौर्लभ्यस्य अमरकामनापदार्थहेतुकत्वात् काव्यलिङ्गभेदः, तत्सापेक्षा चेयमुपमेति सङ्करः ॥ ४६॥ अन्वयः-अमरकाम्यमानया अनया सह योगः अम्बुदागमे घनसंवृतया निशाकरत्विषा कुमुदेन इव त्वया न सुलभः । हिन्दी-जिसकी कामना देवगण करते हैं, ऐसी इस ( दमयन्ती ) के साथ आपका मिलन उसी प्रकार सुलभ नहीं है, जिस प्रकार वर्षागम में मेघाच्छन्न चंद्र को चंद्रिका के साथ कुमुद का योग नहीं होता। टिप्पणी-सर्वथा अनुरूपता होने पर भी नल का दमयन्ती से विवाह सरल
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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