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________________ १६ महाकाव्यम् अन्वयः - विदुषी सा यान् मूर्द्धनि बिभत्ति ते चिकुरप्रकरा जयन्ति, पशुना अपि अपुरस्कृतेन चापरेण वत्तुलनां कः इच्छतु ? हिन्दी - बुद्धिमती वह जिन्हें शिरोधार्य किये हैं, वे जयी हैं ( सर्वोत्कृष्ट ) हैं) केश-समूह, पशु ( सुरा गाय ) ने भी जिन्हें पुरस्कृत नहीं किया ( पृष्ठभाग पूँछ में रखा ) उन चमरी-केशों से कौन दमयन्ती की चिकुरराशि की तुलना करना चाहेगा ? ( कोई नहीं । ) टिप्पणी- चमरी के तुलनायोग्य केशों से भी दमयन्ती के चिकुरजाल की श्रेष्ठता प्रमाणित करने का अद्भुत तर्क । मल्लिनाथ के अनुसार पदार्थहेतुक काव्यलिंग अलंकार और विद्याधर के अनुसार अतिशयोक्ति और व्यतिरेक | काकु वक्रोक्ति ॥ २० ॥ स्वदृशोर्जनयन्ति सान्त्वनां खुरकण्डूयनकैतवान्मृगाः । जितयोरुदयत्प्रमीलयोस्तदखर्वेक्षणशोभया भयात् ॥ २१ ॥ जीवातु - स्वदृशोरिति । मृगाः हरिणास्तस्या दमयन्त्या अखर्वयोरायतयोरीक्षणयोरक्ष्णोः शोभया कर्त्या जितयोरत एव भयादुदयत्प्रमीलयो रुत्पद्यमाननिमीलनयोः स्वशोनिजनयनयोः खुरैः शफै: 'शफ क्लीवे खुरः पुमानि त्यमरः । कण्डूयनस्य कर्षणस्य कैतवाच्छलात्सान्त्वनां जनयन्ति लालनां कुर्वन्ति । यथा लोके परपराजिता निमीलिताक्षाः स्वजनैर्मयनिवृत्तये करतलास्फालनादिना परिसान्त्व्यन्ते तद्वदिति भावः । अत्र कैतवशब्देन कण्डूयन - मपह्नुत्य सान्त्वना रोपादपह्नवभेदः ॥ २१ ॥ अन्वयः -- मृगाः तदखर्वेक्षणशोभया जितयोः स्वदृशोः खुरकण्डूयनकैतवात् सान्त्वनां जनयन्ति । भयात् उदयत्प्रमीलयोः विजित हो मय से मूंदे हिन्दी - हरिण उसके विशाल नेत्रों की शोभा से ये ( तन्द्रा से निमीलित अपने नेत्रों को खुर से खुजाने के व्याज से सांत्वना देते हैं । टिप्पणी- हारे व्यक्ति को सहलाकर सांत्वना दी जाती है, सो मृग भी दमयन्ती के विशाल नयनों से पराजित अतएव त्रस्त हो मुंदे नेत्रों को खुर से
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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