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________________ प्रथमः सर्गः ११७ विलम्ब लगाने वाला मेरा प्रिय कितनी दूर है,--इस प्रकार तेरे पूछने पर (उत्तर में) रोते पक्षियों को विलोकती तेरा वह क्षण कितना कष्टकारक होगा ? टिप्पणी-पानी के संभावित दुःख का मर्मस्पर्शी चित्रण । वह क्षण पत्नी के लिए वज्रपात-तुल्य ही होगा। भावोदय अलंकार ॥१३७॥ कथं विधातर्मयि पाणिपङ्कजात्तव प्रियाशैत्यमृदुत्वशिल्पिनः । वियोक्ष्यसे वल्लभयेति निर्गता लिपिर्ललाटन्तपनिष्ठुराक्षरा ॥ १३८ ।। जीवातु-कथमिति । हे विधातः ! प्रियायाः वरटायाः शैत्यमृदुत्वशिल्पिनस्ताहक् तदङ्गशैत्यमार्दवनिर्माणकात्तव पाणिपङ्कजात्पङ्कजमृदुशिशिरात् पाणेरित्यर्थः । मयि विषये वल्लभया सह वियोक्ष्यसे इत्येवंरूपा अतएव ललाट तपन्ति दहन्तीति ललाटन्तपानि 'असूयललाटयो शितपोरि'ति खलप्रत्ययः, 'अद्विषदि'त्यादिना मुमागमः तानि निष्ठुराणि कर्णकठोराणि चाक्षराणि यस्याः सा लिपिरक्षरविन्यासः कथं निर्गता निःसृता ? अत्र कारणात् विरुद्धकार्योत्पत्तिकथनाद्विषमालङ्कारभेदः 'विरुद्धकार्यस्योत्पत्तियंत्रानर्थस्य भावयेत् । विरूपघटना वा स्याद्विषमालंकृतिमते'ति ।। १३८॥ अन्वयः-विधातः, प्रियाशैत्यमृदुत्वशिल्पिन: तव पाणिपङ्कजात् मयि वल्लभया वियोक्ष्यसे--इति ललाटन्तपनिष्ठुराक्षरा लिपिः कथं निर्गता? हिन्दो-हे विधाता, प्रिया की शीतलता और मृदुता के शिल्पी तेरे करकमल से मेरे विषय में ललाट को तपाने वाले निष्ठुर अक्षरों-वाला ऐसा लेख कि तू प्रिया से वियुक्त होगा, कसे निकला ? टिप्पणी-जो हाथ शीतलता और कोमलता का शिल्पी है, कमल के समान शीत और मृदु है, आश्चर्य है कि विधाता के उसी हाथ ने प्रियावियोग जैसा तापदायक और कठोर लेख हंस के भाग्य में लिखा, कारण के गुण कार्य में क्यों नहीं आये ? कैसी विसंगति है ? विषम और रूपक अलंकार । विषम-कार्यस्य कारणस्य च यत्र विरोधः परस्परं गुणयोः। तद्वस्क्रिययोरथवा संजायतेति तद्विषमम् ।-रुद्रट ॥१३८।। अपि स्वयूथ्यैरशनिक्षतोपमं ममाद्य वृत्तान्तमिमं बतोदिता। मुखानि लोलाक्षि ! दिशामसंशयं दशापि शून्यानि विलोकयिष्यसि ॥
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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