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________________ प्रथमः सर्गः हिन्दी-सहसा आतंक के कारण उड़ पड़ने वाले पक्षिगण से परिव्याप्त सरोवर उछलते जल के रूप में उत्सुकता प्रकट करता दयाभाव को प्राप्त हो उस राजा को मानों तरंगों से चंचल जलज रूप हाथों से हंस के ग्रहण से रोकने लगा ( निषेध करने लगा )। टिप्पणी-हंस के पकड़े जाने पर स्वाभाविक रूप आतंकित पक्षी जब सहसा उड़ पड़े और इस कारण जल हिल गया और उसमें बनती लहरों द्वारा कमलं भी चंचल हो उठे, जिनको राजा को हंस पकड़ने का निषेध करते सरोवर के हाथों के रूप में संभावना की गयी है। मल्लिनाथ ने इस श्लोक में रूपक-उत्प्रेक्षा का तथा चंद्रकलाकार ने उपमा-उत्प्रेक्षा के अंगांगिमाव के संकर का निर्देश किया है। विद्याधर के अनुसार यहाँ अनुप्रास-उत्प्रेक्षा-रूपक-स्वभावोक्ति का संकर है ।।१२६॥ पतत्त्रिणा तद्रुचिरेण वञ्चितं श्रियः प्रयान्त्याः प्रविहाय पल्वलम् । चलत्पदाम्भोरुहन पुरोपमा चुकूज कूले कलहसमण्डली ।। १२७ ।। जीवात--पतत्त्रिणेति । रुचिरेण पतत्त्रिणा हंसेन वञ्चितं विरहितं तत्पल्वलं सरः विहाय प्रयान्त्याः गच्छन्त्याः श्रियो लक्ष्म्याश्चलद्भयां पदाम्भोरुहनूपुराभ्याम् उपमा साम्यं यस्याः सा कलहंसमण्डली कूले चुकूज । यूथभ्रंशे कूजनमेषां स्वभावस्तत्र हंसेनैव सह गच्छन्त्याः सरःशोभायाः श्रीदेव्या सहाभेदाध्यवसायेन कूजत्कलहंसमण्डल्यां तन्नूपुरत्वमुत्प्रेक्ष्यते । उपमाशब्दोऽपि मुख्यार्थानुपपत्तेः सम्भावनालक्षक इत्यवधेयम् ॥ १२७ ।। अन्वयः--रुचिरेण पतत्त्रिणा वञ्चितं तत् पल्वलं विहाय प्रयान्त्याः श्रियः चलत्पदाम्भोरुहनूपुरोपमा कलहंसमण्डली कूले चुकूज । हिन्दी-( उस ) मनोहर पक्षी ( स्वर्णहंस ) से रहित उस सर को छोड़ कर जाती लक्ष्मी के गमन करते चरण-कमल में पहिने नूपुरों से समानता करती कलहंसों की मंडली तीर पर शब्द करने लगी। टिप्पणी- मनोरम हंस के न रहने से तालाब की मानो श्री-शोमा ही समाप्त हो गयी। आतंकित तीरवर्ती साथी कलहंस कूजने लगे। इस पर सरःश्री के पैर के बजते मंजीरों की सुन्दर कल्पना की गयी है। कवि ने प्र+या
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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