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________________ प्रथमः सर्गः अन्वयः-यः अलिश्यामलतोदरश्रियां सिताम्बुजानां निवहस्य छलात् तमःसमच्छायकलङ्कसकुलं बहुलं सुधांशोः कुलं वहन् बहु बभौ । हिन्दी-जो ( तालाब ) भ्रमरों से श्मामल मध्य भाग की शोभा से युक्त श्वेतकमल-समूह के व्याज से अंधकार सदृश प्रतीत होते कलंकचिह्न से व्याप्त अमृत किरण चन्द्र के विस्तृत समूह को धारण करता बड़ा मला लग रहा था। टिप्पणी- यहाँ भ्रमरावली से शोभित श्वेतकमलों में अनेक चंद्रों की कल्पना की गयी, जिससे सरोवर की स्वच्छता भी द्योतित होती है । 'बहुलम्' का अर्थ कृष्णपक्ष-संबद्ध भी हो सकता है। मल्लिनाथ के अनुसार यहाँ अपह्नव और व्यतिरेक हैं, चंद्रकलाकार उपमा-कैतव अपह नुति का अंगांगिमाव संकर मानते हैं और विद्याधर अनुप्रास और अपह नुति का निर्देश करते हैं ।।११०॥ रथाङ्गभाजा कमलानुषङ्गिणा शिलीमुखस्तोमसखेन शाङ्गिणा। सरोजिनीस्तम्बकदम्बकैतवान्मृणालशेषाहिभुवाऽन्वयायि यः ॥ १११ ।। जीवातु--रथाङ्गेति । यस्तडागो रथाङ्ग चक्रवाकः चक्रायुधञ्च यद्यपि चक्रवाके रथाङ्गनामेति च प्रयोगो रूढः तथापि प्रायेणास्य चक्रशब्दपर्यायत्वप्रयोगदर्शनात् (रथाङ्ग) पदस्याप्युभयत्र प्रयोगम्मन्यते कविः, तद्भाजा 'भजो विः', कमलः कमलया चानुपङ्गिणा संसर्गवता शिलीमुखस्तोमसखेन अलिकुलसहचरेण अन्यत्र सखिशब्दः सादृश्यवचनः तत्सवणेनेत्यर्थः, मृणालं शेषाहिरिवेत्युपमितसमासः, तद्भवा तदाकरेण अन्यत्र मृणालमिव शेषाहिः तद्भवा तदाधारेण शाङ्गिणा विष्णुना सरोजिनीनां स्तम्बा गुल्माः, 'अप्रकाण्डे स्तम्बगुल्ममि'त्यमरः, तेषां कदम्बस्य कैतवान्मिपात् अन्वयायि अनुयातोऽनुसृतोऽधिष्ठित इति यावत् । अत्रापि कैतवशब्देन स्तम्बत्वमपह नुत्य शाङ्गित्वारोपादपह नवभेदः ॥ १११ ॥ अन्वयः-यः रथाङ्गभाजा कमलानुषङ्गिणा मृणालशेषाहिभुवा शिलीमुखस्तोमसखेन सरोजिनीस्तम्बकदम्बकैतवात् शाङ्गिणा अन्वयायि । हिन्दो-जो ( सर ) चक्रवाकयुगलों से शोभित, कमलों से परिपूर्ण, मृणाल रूप शेषनाग पर स्थित, भ्रमर-समूह से पूर्ण कमलिनी के गुल्म-समूह के व्याज से ७ नै० प्र०
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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