SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६ नैषधमहाकाव्यम् अन्वयः-रयप्रकर्षाध्ययनार्थम् आगतः अणिमाङ्कित : जनस्य चेतोभिः इव अजस्रभूमीतटकुट्टनोद्गतः रेणु मिः चरणेषु उपास्यमानम् इव""""। हिन्दी-वेग की प्रकृष्टता-आधिक्य को सीखने आये, परिमाण में अणु के समान लोगों के चित्तों के तुल्य निरन्तर भूमितल के कूटने से उड़ी धूलि से उपासित ( युक्त और पूजित ) घोड़े पर"...। टिप्पणी-अश्व के वेग और स्वभाव का वर्णन । रेणु की तुलना अध्ययन करने आये मन से करना द्योतित करना है कि अश्व 'मनोजव' ही नहीं था, मन से कहीं अधिक वेगवान् था, उसी कारण धूलि-कणरूप में जन-मन अश्व के चरणों पर संलग्न ही नहीं थे, शिष्यों के सदृश चरणोपासना कर रहे थे। मल्लिनाथ ने इस श्लोक में उत्प्रेक्षा का ही उल्लेख किया है, विद्याधर ने उत्प्रेक्षा और जाति अलंकार माने हैं। चंद्रकलाकार ने समासोक्ति-उत्प्रेक्षा का 'एकाश्रयानुप्रवेशसंकर' माना है ।।५९॥ चलाचलप्रोथतया महीभृते स्ववेगदानिव वक्तुमुत्सुकम् । अलं गिरा वेद किलायमाशयं स्वयं हयस्येति च मौनमास्थितम् ॥६०॥ जीवातु-चलाचलेति । पुनः चलाचलप्रोथतया स्वभावतः स्फुरमाणघोणतया 'चरिचलिपदीनामुपसंख्याना'च्चलेद्विर्वचनं दीर्घश्च । 'घोणा तु प्रोथमस्त्रियामि'त्यमरः । महीभते नलाय स्ववेगदान वेगातिरेकान् वक्तुमुत्सुकमुद्युक्तमिवेत्युत्प्रेक्षा । अथावचने हेतुमुत्प्रेक्षते-अलमिति । गिरा उक्त्या अलं, कुतः, अयं नलः स्वयं हयस्याश्वस्य आशयमभिप्रायं वेद वेत्ति किल । 'विदो लटो वे'ति णलादेशः । इति हेतोरिवेत्यनुषङ्गः मौनं तूष्णीम्भावञ्चास्थितं प्राप्तम् । अश्व हृदयवेदी नल इति प्रसिद्धिः ॥ ६० ॥ अन्वयः-चलाचलप्रोथतया स्ववेगदान् महीभृते वक्तुम् उत्सुकम् इव, अयं स्वयं हयस्य आशयं वेद किल--इति गिरा अलम् आस्थितम्"। हिन्दी--अत्यंत चंचल नासापुट ओष्ठाग्र माग से युक्त होने के कारण अपने वेगाभिमान के विषय में मानो राजा से निवेदन करने को उत्सुक परंतु यह ( राजा ) स्वयं घोटक के आशय को समझता है-सो वाणी को विश्राम दिये-मौन घोड़े पर।
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy