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________________ ५० नैषधमहाकाव्यम् निर्देश किया है और छद्म से भिन्न वस्तु के रूप-निगूहन के आधार पर विद्याधर ने व्याजोक्ति ॥५१॥ शशाक निह्नोतुमनेन तत्प्रियामयं वभाषे यदलीकवीक्षिताम् । समाज एवालपितासु वैणिकैर्मुमूर्छ यत्पञ्चममूर्च्छनासु च ॥५२॥ जीवातु-शशाकेति । अयनलोऽलीकवीक्षितां मिथ्यादृष्टां प्रियां दमयन्ती समाने सभायामेव यत् बभाषे बभाण, वीणा शिल्पमेषां तैर्वेणिकः वीणावादैः 'शिल्पमि'ति ठन् । आलपितासु सूच्चरितासु व्यक्ति गतास्वित्यर्थः । 'रागव्यञ्जक आलाप' इति लक्षणात् । पञ्चमस्य पञ्चमाख्यस्य स्वरस्य मूर्च्छनासु 'आरोहावरोहणेषु क्रमात् स्वराणां सप्तानामारोहादवरोहणम् । मूर्च्छ नेत्युच्यत' इति लक्षणात् । पञ्चमग्रहणन्तस्य कोकिलालापकोमलत्वेन उद्दीपकत्वातिशयविवक्षयेत्यनुसन्धेयम् । मुमूर्च्छत्यपि यत्तदुभयम् अनेन प्रकारेण निह्नोतुमाच्छादयितुं शशाक । 'अये' इति पाठे विषादे इत्यर्थः । 'अये क्रोधे विषादे चे'ति विश्वः । एतेन ह्रीत्यागोन्मादमूर्छावस्थाः सूचिताः ॥ ५२ ।। ___ अन्वयः यत् अयम् अलीकीक्षितां प्रियां बभाषे, यत् च वैणिकैः पंचममूर्च्छनासु आलपितासु समाजे एव मुमूच्छं तत् अनेन निह्नोतुं शशाक । हिन्दी--जो कि नल ने भ्रान्ति से मिथ्या परिलक्षित प्रिया दमयन्ती के प्रति कुछ कहा और वेणुवादकों द्वारा पंचम स्वर की मूर्च्छनाओं में आलाप लिये जाने पर जो समाज-सभा में वे मूच्छित हुए, वे इसे ( इसी कारण उस अलपित और मूच्छित हो जाने की वास्तविकता को ) छिपाने में समर्थ हुए । टिप्पणी--प्रथम चरण में 'शशाकनिह्नोतुमयेन' पाठ भी है, 'अयेन निहोतुं शशाक'---ऐसा पदच्छेद करने पर अर्थ हुआ कि नल का अपलपित सभामध्य मूर्छनालाप सुनने से 'अयेन'--भाग्य से बच गया। यह समझा गया कि वे रागालाप से मूछित हो गये हैं; अथवा सभ्यगण ही रागालाप के संमोहन में आ गये और वे नल का अपलापित न सुन सके । यह सब दैववश ही हो पाया । षड्जादि सप्तस्वरों के क्रम से आरोह अवरोह मूच्र्छना कहे जाते हैं (शाङ्गदेव, संगीतरत्नाकर, स्वराध्याय)। भरतकोष ( पंडितमण्डली ) के अनुसार 'मूर्च्छ' धातु सु ल्युट् प्रत्यय होकर करणार्थ में मूर्छना शब्द की निष्पत्ति
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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