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________________ नैषघमहाकाव्यम् जीवातु — स्वेत्यादि । अथ नलोऽपि स्वस्य कान्त्या सौन्दर्येण याः कीर्त्तयः तासां व्रजः पुच एव मौक्तिकस्रक् मुक्ताहारः तस्या अन्तः अभ्यन्तरे घटनागुणश्रियं गुम्फनसूत्रलक्ष्मीं श्रयन्तं भजन्तं युवधैर्यलोपिनं तरुणचित्तस्थैर्य्यपरिहारिणम् अस्या दमयन्त्या गुणोत्करं सौन्दर्यसन्दोहं लोकादागन्तुकजनात् अटणोत्, अत्र कीर्त्तिव्रजगुणोत्करयोर्मुक्ताहारगुम्फन सूत्रत्वरूपणाद्रूपकालङ्कारः॥४२ अन्वयः - कदाचित् नलः अपि लोकात् स्वकान्तिको तिव्रजमौक्तिकस्रजः अन्तर्घटना गुणश्रियं श्रयन्तं युवर्षं र्य लोपिनं अस्याः गुणोत्करम् अशृणोत् । हिन्दी - किसी समय नल ने भी लोगों के मुंह से स्व अर्थात् अपने अथवा दमयन्ती के सौंदर्यविषयक मुक्तामाल के मध्य गुंफित होने वाले सूत्र अथवा नल के अंतस्-मन में प्रविष्ट गुण अर्थात् सौंदर्यादि की श्री को प्राप्त करके तरुणों के धेयं को विलुप्त करते उस ( दमयन्ती ) के गुणों (रूप, शोमाआदि ) को सुना । टिप्पणी- गुणश्रवण से आकृष्ट नल के दमयन्ती के वर्णन । कीर्तिव्रज और गुणोरकर के मुक्ताहार और गुंफन के कारण इस श्लोक में रूपक अलंकार है ॥४२॥ तमेव लब्ध्वावसरं ततः स्मरश्शरीरशोभाजयजातमत्सरः । अमोघशक्त्या निजयेव मूर्तया तथा विनिर्जेतुमियेष नैषधम् ॥ ४३ ॥ जीवातु--- अथास्य तस्यां रागोदयं वर्णयति - तमेवेति । ततो गुणश्रवणानन्तरं शरीरशोभाया देहसौन्दर्य्यस्य जयेन जातमत्सरः उत्पन्नवैरः स्मरः तमेवा वसरमवकाशं लब्ध्वा मूर्त्तया मूर्तिमत्या निजया अमोघशक्तयेव अकुण्ठितसामयेंनेवेत्युत्प्रेक्षा । तया दमयन्त्या नैषधं नलं विनिर्जेतुमियेष इच्छति स्म, रन्ध्रापिणो हि विद्वेषिण इति भावः । तेन रागोदय उक्तः ॥ ४३ ॥ अन्वयः -- ततः शरीरशोभाजयजातमत्सरः स्मरः तम् एव अवसरं लब्ध्वा मूर्तया निजया अमोघशक्त्या इव तथा नैषधं विनिर्जेतुम् इयेष । हिन्दी - दमयन्ती के रूप- गुण सुनने के अनंतर अपने शरीर की शोभा के ( नल द्वारा ) जय के कारण जिसमें ( नल के प्रति ) ईर्ष्या जाग गयी है, ऐसे नामने उसी अवसर को पाकर मानों देह-धारिणी अपनी अमोघ शक्ति के तुल्य उस ( दमयन्ती ) के माध्यम से निषधपति को जीतने की इच्छा की । ४२ प्रति अनुराग का सूत्र भाव में रूपण
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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