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________________ ( ११ ) करो मां, कि मैं ऐसा बोलने में समर्थ हो जाऊँ कि मेरा कहा लोग समझ सकें। देवी ने कहा 'पुत्र, आधीरात में सिर गीला करके दही का सेवन करो और सो जाओ । कफांश में वृद्धि होने से कुछ जड़ता आ जायेगी।' श्रीहर्ष ने मां के आदेश का पालन किया और वे ऐसा कहने-बोलने में समर्थ हुए कि उनकी वाणी लोकगोचरीभूता हुई। श्रीहर्ष ने अनेक ग्रन्थ रचे और कृतकाम हो वे काशी पहुँचे । नगर में पहुंचकर उन्होंने महाराज जयंतचन्द्र को अपने पढ़कर लौट आने की सूचना भिजवायी। गुणज्ञ राजा श्रीहर्ष के पिता के जेता पंडित और अन्य विद्वानों के साथ श्रीहर्ष के स्वागत-सत्कार के निमित्त नगर-प्रांत में पहुंचे। राजा के स्नेह-सत्कार से तुष्ट कवि ने राजा की प्रशंसा में कहागोविन्दनन्दनतया च वपुःश्रिया च मास्मिन्नृपे कुरुत कामघियं तरुण्यः । अस्त्रीकरोति जगतां विजये स्मरः स्त्रीरस्त्रीजनः पुनरनेन विधीयते स्त्री । ___ और स्वयं ही उच्चस्वर में इस स्तुति की सरस व्याख्या की-'हे तरुणियों, गोविन्द-नन्दन होने और शरीर की कान्ति के कारण इस नृपति को कामदेव मत समझो; यह काम नहीं है, (उससे कहीं अधिक है), काम तो जब जगद्विजयार्थ प्रस्तुत होता है तो सुन्दरियों को अस्त्र बनाता है, पर यह नरेश अस्त्रधारियों को विजय करते समय स्त्री बना डालता है--अर्थात परजन नारियों की भांति इसके शरणागत हो जाते हैं। यहाँ चमत्कार है 'अस्त्री' शब्द प्रयोग के कारण । जो स्त्री हैं, उन्हें काम 'अस्त्रीकरोति' (स्त्री नहीं रहने देता, विरोध-परिहार में अर्थ अस्त्र युक्त करता है ), राजा 'अस्त्रीजन' ( जो स्त्री नहीं है, विरोध-परिहार में अर्थ अस्त्रधारी) को 'स्त्री' बनाता है। इसी विरोधाभास के चमत्कार में राजा का काम से 'व्यतिरेक' प्रमाणित होता है। सभा और राजा चमत्कृत हुए और संतुष्ट हुए। तब श्रीहर्ष ने पितृवरी के प्रति कहा-'चाहे सुकुमार काव्य-साहित्य हो अथवा कठोर न्यायग्रन्थिलतर्क, मेरे विधाता ( रचयिता) होने पर भारती का लीला-विलास एक समान ही रहता है। चाहे मुलायम, कोमल विस्तर से सजी शय्या हो, चाहे दर्भ के काटे विछी नंगी धरती, यदि पति मनभाया है तो तरुणियों की रति समान ही होती है'
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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