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________________ नैषधमहाकाव्यम् भूदित्यर्थः । रजेवादिकाल्टट् । अतएव विनिद्र रोमा रोमाञ्चिता अजनीति सात्त्विकोक्तिः । जनेः कर्तरि लुङ् 'दीपजने'त्यादिना च्लेश्चिणादेशः । नलगुणश्रवणजन्यो रागस्तस्य रोमाञ्चेन व्यक्तोऽभूदिति भावः ॥ ३४ ॥ अन्वयः-सा दिने दिने वन्दिनाम् अवसरेपु पितुः उपासनाम् एत्य तेषु भूपतीन् प्रति (प्रतिभूपतीन् वा) पठत्सु नलं शृण्वती विनिद्ररोमा अजनि रज्यते स्म (च) । हिन्दी--वह प्रतिदिन स्तुतिपाठकों के स्तुतिपाठ के समय अपने पिता की सेवा में उपस्थित होकर उनके राजाओं ( अथवा अन्य राजाओं ) के सम्बन्ध में वर्णन करते होने पर नल के विषय में सुनती पुलकित हो जाती थी और इस प्रकार वह ( नल में ) अनुरक्त हो गयी। टिप्पणी-यहां गुणश्रवण का अवसर बताया गया। विद्याधर के अनुसार यह औत्सुक्य भावोदय का उदाहरण है, सात्विक रोमाञ्च का वर्णन भी है ॥३४॥ कथाप्रसङ्गेषु मिथस्सखीमुखात्तृणेऽपि तन्व्या नलनामनि श्रुते । द्रुतं विधूयान्यदभूयतानया मुदा तदाकर्णनसज्जकर्णया ॥३५॥ जीवातु-कथेति । मिथोऽन्योऽन्यं रहसि कथाप्रसङ्गेषु विस्रम्भगोष्ठीप्रसङ्गेषु सखीमुखाञ्चलनामनि नलाख्ये तृणे श्रुते सति 'नलः पोटगले राज्ञी'ति विश्वः । अनया तन्व्या दमयन्त्या द्रुतमन्यत् कार्यान्तरं विघूय निराकृत्य मुदा हर्षेण तदाकर्णने नलशब्दाकर्णने सज्जकर्णया दत्तकर्णया अभूयत अभावि । 'भुवो भावे' लङ् । अर्थान्तरप्रयुक्तोऽपि नलशब्दो नृपस्मारकतया तदाकर्षकोऽभूदिति रागातिशयोक्तिः ॥ ३५ ॥ अन्वयः-तन्व्या अनया मिथः कथाप्रसङ्गेषु सखीमुखात् तृणेऽपि नलनामनि श्रुते अन्यत् द्रुतं विधूय मुदा तदाकर्णनसज्जकर्णया प्रभूयत । हिन्दी-कोमलाङ्गी यह दमयन्ती परस्पर बातचीत के अनेक रहस्यालापों में सखियों के मुख से थोड़ा-भी नल का नाम सुनने पर अन्य ( विषय ) तुरन्त त्यागकर प्रसन्नतया उसके सम्बन्ध में सुनने के लिए कान लगा देती थी। ट्रिप्पणी-यहाँ रागातिशय दिखाया गया है। हर्ष और औत्सुक्य की 'भावशबलता' है 'तन्वी' पद विरहकृशता का द्योतक है ॥३५॥
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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