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________________ ( २ ) चरकसंहिता और सुश्रुतसंहिता दोनोंमें गद्य पद्य दोनों उपलब्ध होते हैं। आधुनिक वाग्मटसंहिता, शाङ्गंधर संहिता मावप्रकाश, माधवनिदान केवल पद्यमय हैं। अर्थशास्त्रमें बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र, कौटलीय अर्थशास्त्र गद्यमय हैं, उनमें भी कहीं-कहीं पद्य उपलब्ध हैं। तन्त्रग्रन्थ भी अधिकतर पद्यमय ही हैं। लौकिक साहित्यमें पद्यका आविर्भाव सबसे पहले वाल्मीकिरामायणसे हुआ। निषादके बाणसे क्रौञ्चपक्षीको हत्या होनेसे वाल्मीकि मुनिके हृदयमें करुणा और शोककी तीव्रतासे-- "मा निषाद ! प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतोः समाः। यत्क्रौञ्चमिषुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥" इस प्रकार जो वाक्य प्रादुर्भूत हुआ वह छन्दोबद्ध होनेसे पद्यात्मक हुआ। अनन्तर शापरूप वाक्यके मुखसे निकल जानेसे मुनिको अपने अनौचित्यकी प्रतीति हुई और पश्चात्ताप भी हुआ, तब ब्रह्मदेवने अवतीर्ण होकर उनको रामायण बनानेकी अनुमति दो। उसके फलस्वरूप लोकमें "वाल्मीकिरामायण" नामका पद्यात्मक प्रबन्ध आदिकाव्यके रूपमें अवतीर्ण हुआ। तदनन्तर पञ्चमवेदके रूपमें संमत "महाभारत" मो पद्यमय है, उसमें अपवाद रूपमें कहींकहीं गद्यका भी दर्शन होता है। ब्रह्मपुराण आदि अठारह पुराण कल्किपुराण आदि उपपुराण भी पद्यमय ही हैं। श्रीमद्भागवतमें पञ्चमस्कन्धमें कुछ गद्यात्मक वाक्य भी उपलब्ध होते हैं। पीछेसे पद्यमें अतिप्रचलनसे साधारणता होनेसे छन्दके वशमें होनेसे भावविस्तरकी न्यूनतासे तथा विषयवस्तुको सरलता होनेसे मी "गद्य" का प्रचलन चल पड़ा। न्याय आदि दर्शनग्रन्थ सबके सब गद्यमय हैं। इसी तरह वात्स्यायनमुनिकृत कामसूत्र भी गद्यात्मक है, कहीं कहीं उसमें विशेष वक्तव्य विषय पद्यमें भी दृष्टिगोचर होते हैं । यह तो हुआ संस्कृत वाङ्मयमें गद्य और पद्यकी स्थितिका सामान्य वर्णन । अब काव्यमें उसमें भी गद्यकाव्यका वर्णन करनेके लिए उपक्रम करते हैं। विश्वनाथ कविराजने दृश्य और श्रव्य इस प्रकार काव्यके दो भेदोंको लिखा है। दृश्य - अभिनेय अर्थात् नाटक आदि माने गये हैं। श्रव्य काव्यके दो भेद हैं गद्य और पद्य । छन्दोबद्ध पदको “पद्य" कहते हैं। पद्यकाव्यके भेद खण्डकाव्य और महाकाव्य आदि हैं। उनके विषयमें हमें कुछ कहना नहीं है। छन्दके बन्धनसे रहित वाक्यको "गद्य" कहते हैं । गद्यके चार भेद माने गये हैं, मुक्तक, वृत्तगन्धि, उत्कलिकाप्राय और चूर्णक । समासरहित गद्यको मुक्तक, छन्दके अंशसे युक्तको "वृत्तगन्धि" दीर्घ समासवालेको "उत्कलिकाप्राय" और अल्प समासवाले गद्यको “चूर्णक' कहते हैं। ये हुए गद्यके भेद और लक्षण । गद्यकाव्यके दो भेद हैं, कथा और आख्यायिका । विश्वनाथ कविराज साहित्यदर्पणमें कथाका लक्षण लिखते हैं कथायां सरसं वस्तु गयेरेव विनिर्मितम् ॥ ६-३३२ ॥ क्वचिवत्र भवेवार्या, क्वचिद्वक्त्राऽपवक्त्रके। आदी पचनमस्कारः, खलादेर्वृत्तकोर्तनम् ॥ ६-३३३॥ अर्थात् कथामें गद्योंसे ही रचा गया सरस इतिवृत्त होता है। इसमें कहीं आर्या, और कहीं वक्त्र और अपवक्त्रक छन्द होते हैं। इसमें आरम्भमें पद्योंसे देवताओंका नमस्कार किया जाता है और सज्जन और दुर्जन आदिके चरित्रका वर्णन होता है। कथाके उदाहरण दण्डी कविका दशकुमारचरित, महाकवि बाणभट्टकी कादम्बरी और धनपालकृत तिलकमञ्जरी आदि हैं। इसी तरह विश्वनाथ कविराज आख्यायिकाका लक्षण करते हैं "आख्यायिका कथावत्स्यात्कवेवंशाऽनुकीर्तनम् । अस्यामन्यकवीनां च वृत्तं पधं क्वचित्ववचित् ॥६-३३४ ॥
SR No.009564
Book TitleKadambari
Original Sutra AuthorBanbhatt Mahakavi
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages172
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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