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________________ उपोद्घात्र हृदयमें उठे हुए भावको व्यक्त रूपसे प्रकाशित करनेके साधनको "भाषा" कहते हैं। यद्यपि सङ्कत आदिसे भी भाव प्रकाशित हो सकता है पर उससे व्यक्त तथा विस्तीर्ण रूपसे अभिप्राय प्रकाशित नहीं हो सकता है। अत: भाषाके वाक्यसमहसे भाव प्रकाशित किया जाता है। वर्णसमहसे पद, पदसमूहसे वाक्य बनता है। भाषाके लिखित रूपमें दो विधाओंसे भाव प्रकाशित होता है; उनमें पहला है गद्य और दूसरा पद्य । भाषामें भाष धातु और गद्यमें गद धातु व्यक्त वचन करनेके अर्थमें हैं। ऐसा प्रतीत होता है व्यक्त और अकृत्रिम रूपसे गद्यके द्वारा भाव प्रकाशित होता है। "पदम् ( चरणम् ) अर्हति" इस व्युत्पत्तिसे पद शब्दसे अर्हाऽर्थ में यत् प्रत्यय होकर "पद्य" पद निष्पन्न होता है । फलतः छन्दोबद्ध रूपसे पद्यके द्वारा भाव प्रकाशित होता है । गद्य सहज और सरल है तो पद्य कृत्रिम और दुरूह हो सकता है। गद्य सहज रूपसे प्रकट होनेसे प्रायः अनलकृत होता है तो पद्य अनुप्रास और लय आदिसे अलङ्कृत और मनोहर होता है, अतः पद्य गाया भी जा सकता है, आसानीसे कण्ठस्थ भी किया जा सकता है अतः हमें संस्कृत वाङमयमें पद्यकी ही अधिक उपलब्धि होती है। विश्वसाहित्यमें लिखित रूपमें जिस किसी भी भाषामें हमें पहले पहल पद्यका ही दर्शन होता है, अतएव आधुनिक विद्वानोंसे सर्वप्रथम माने गये "ऋग्वेद' में हमें पद्योंका ही दर्शन मिलता है। जैमिनि मुनि मीमांसादर्शन में ऋक्का लक्षण करते हैं-“यत्राऽर्थवशेन पादव्यवस्थितिः सा ऋक्" (२-१, १०-३५) अर्थात् जिस मन्त्रमें छन्दोविशेषके वशसे चरणको व्यवस्था होती है, उसे "ऋक्" कहते हैं। इस प्रकार ऋक्-मन्त्रोंसे युक्त वेदको "ऋग्वेद" कहते हैं। सामका लक्षण करते हैं-"ता: सगीतयः सामानि" अर्थात् वे ही ऋक् मन्त्र, गानसे युक्त हों तो उन्हें “साम" कहते हैं। अर्थात् षड्ज आदि स्वरोंका विशेष रूपसे विन्यास होकर गानात्मक होनेसे वे ही ऋचाएं "साम" के रूपमें परिणत होती हैं । इस प्रकार साममन्त्रोंसे युक्त वेदको "सामवेद" कहते हैं। __ इसी प्रकार “यजु" का लक्षण है-"शेषे यजुःशब्द:" अर्थात् जो "ऋक्" के समान छन्दोबद्ध नहीं है और न “साम" के समान गीतिबद्ध है उसे "यजु" कहते हैं। यजुर्मन्त्रोंसे युक्त वेदको "यजुर्वेद" कहते हैं । यद्यपि यजुर्वेदमें कतिपय ऋक मन्त्र भी हैं तथाऽपि "प्राधान्येन व्यपदेशा भवन्ति" इस न्यायसे उसे यजुर्वेद ही कहते हैं। अथर्ववेदमें भी पद्य भाग अधिक हैं और गद्य भाग कम “मन्त्रब्राह्मणयोवेदनामधेयम्" (बापस्तम्ब ) इस उक्तिके अनुसार सामान्यतः वेदके मन्त्र और ब्राह्मणमें दो विभाग हैं। उनमें संहितारूप ऋक् आदि चारों वेद मन्त्ररूप हैं, और ऋग्वेदमें ऐतरेय आदि, यजुर्वेदमें शतपथ आदि, सामवेदमें बाय आदि और अथर्ववेदमें गोपथ आदि ब्राह्मण प्रसिद्ध हैं। ब्राह्मणमें मन्त्रोंका निर्वचन, विनियोग, प्रयोजन, प्रतिष्ठान और विधिका वर्णन रहता है। ब्राह्मण सबके सब गद्यमय हैं। ब्राह्मणके परिशिष्ट भागको "आरण्यक" कहते हैं। वे भी गद्यमें ही हैं। वेदके अन्तिम भाग उपनिषत् कुछ तो पद्यमय हैं और कुछ गद्यमय, कतिपय उपनिषदोंमें गद्य और पद्य दोनों उपलब्ध होते हैं। वेदाङ्गोंमें शिक्षाग्रन्थ पाणिनिशिक्षा आदिमें पद्य हैं, कुछमें गद्य पद्य दोनों हैं । कल्पोंके तीन भेद हैं श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र और धर्मसूत्र । सूत्रग्रन्थोंमें हमें संक्षिप्त गद्यका स्वरूप मिलता है। धर्मसूत्रमें गद्य और पद्य दोनोंका संमिश्रण मिलता है। व्याकरण, और छन्द दोनों गद्यमें हैं। व्याकरणमें सूत्र और वार्तिक गद्यमय हैं। पतञ्जलिमुनिके महाभाष्यमें प्रश्नोत्तर रूपमें हमें उत्कृष्ट गद्यका स्वरूप मिलता है। निरुक्त भी गद्यमय है, ज्योतिष पद्यमय है। वेदके उपाङ्गोंमें आयुर्वेद
SR No.009564
Book TitleKadambari
Original Sutra AuthorBanbhatt Mahakavi
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages172
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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