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________________ ११६ कुन्दकुन्द-भारती चाहिए।।३४५-३४८।। आगे इसी बातको दृष्टांतसे कहते हैं -- जह सिप्पिओ उ कम्मं, कुव्वइ ण य सो उ तम्मओ होइ। तह जीवोवि य कम्मं, कुव्वदि ण य तम्मओ होइ।।३४९।। जह सिप्पिओ उ करणेहिं, कुव्वइ ण य सो उ तम्मओ होइ। तह जीवो करणेहिं, कुव्वइ ण य तम्मओ होइ।।३५०।। जह सिप्पिओ उ करणाणि गिण्हइ ण सो उ तम्मओ होइ। तह जीवो करणाणि उ, गिण्हइ ण य तम्मओ होइ।।३५१।। जह सिप्पिउ कम्मफलं, भुंजदि ण य सो उ तम्मओ होइ। तह जीवो कम्मफलं, भुंजइ ण य तम्मओ होइ।।३५२।। एवं ववहारस्स उ, वत्तव्वं दरिसणं समासेण। सुणु णिच्छयस्स वयणं, परिणामकयं तु जं होई।।३५३।। जह सिप्पिओ उ चिटुं, कुब्वइ हवइ य तहा अणण्णो से । तह जीवोवि य कम्म, कुव्वइ हवइ य अणण्णी से।।३५४।। जह चिटुं कुव्वतो, उ सिप्पिओ णिच्च दुक्खिओ होई। तत्तो सिया अणण्णो, तह चेतो दुही जीवो।।३५५।। जिस प्रकार सुनार आदि शिल्पी आभूषण आदि कर्मको करता है परंतु वह आभूषणादिसे तन्मय नहीं होता उसी प्रकार जीव भी पुद्गलात्मक कर्मको करता है परंतु उससे तन्मय नहीं होता। जिस प्रकार शिल्पी हथौड़ा आदि करणोंसे कर्म करता है परंतु वह उनसे तन्मय नहीं होता उसी प्रकार जीव भी योग आदि करणोंसे कर्म करता है परंतु तन्मय नहीं होता। जिस प्रकार शिल्पी करणोंको ग्रहण करता है परंतु तन्मय नहीं होता उसी प्रकार जीव करणोंको ग्रहण करता है परंतु तन्मय नहीं होता। जिस प्रकार शिल्पी आभूषणादि कर्मोंके फलको भोगता है परंतु तन्मय नहीं होता उसी प्रकार जीव भी कर्मके फलको भोगता है परंतु तन्मय नहीं होता। इस प्रकार व्यवहारका दर्शन - मत संक्षेपसे कहनेयोग्य है। अब निश्चयके वचन सुनो जो कि अपने परिणामोंसे किये हुए होते हैं। जिस प्रकार शिल्पी चेष्टा करता है परंतु उस चेष्टासे अनन्य - अभिन्न - तद्रूप रहता है उसी प्रकार जीव भी कर्म करता है परंतु वह उन कर्मोंसे -- रागादिरूप परिणामोंसे अनन्य - अभिन्न रहता है। तथा जिस प्रकार शिल्पी चेष्टा करता हुआ निरंतर दु:खी होता है और उस दुःखसे अभिन्न रहता है उसी प्रकार चेष्टा करता हुआ जीव भी निरंतर दुःखी होता है और उस
SR No.009561
Book TitleSamaya Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages79
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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