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________________ प्रवचनसार १७७ जो अशुभोपयोगको पहले छोड़ चुका है, अब शुभोपयोगमें भी प्रवृत्त होनेके लिए जिसका जी नहीं चाहता, जो शुद्धात्माको छोड़कर अन्य सब द्रव्योंमें मध्यस्थ हो रहा है और जो निरंतर सहज चैतन्यसे उद्भासित एक निजशुद्ध आत्माका ही ध्यान करता है वह शुद्धोपयोगी है। इस जीवके उपयोगको शुद्धोपयोग कहते हैं। इस शुद्धोपयोग के प्रभावसे आत्माका परद्रव्य के साथ संयोग छूट जाता है। इसलिए ही श्री कुंदकुंद स्वामीने शुद्धोपयोगी होनेकी भावना प्रकट की है।।६७।। आगे शरीरादि परद्रव्यमें भी माध्यस्थ्य भाव प्रकट करते हैं -- राणा णाहं देहो ण मणो, ण चेव वाणी ण कारणं तेसिं। कत्ता ण ण कारयिदा, अणुमत्ता णेव कत्तीणं ।।६८।। न मैं शरीर हूँ, न मन हूँ, न वचन हूँ, न उनका कारण हूँ, न उनका करनेवाला हूँ, न करानेवाला हूँ और न करनेवालोंको अनुमति देनेवाला हूँ। परमविवेकी मनुष्य जिसप्रकार शरीरसे इतर पदार्थों में परत्वबुद्धि रखते हैं उसी प्रकार स्वशरीरमें भी परत्वबुद्धि रखते हैं। स्वशरीर ही नहीं, उसके आश्रयसे होनेवाले काय, वचन और मनोयोगमें भी परत्व बुद्धि रखते हैं। यही कारण है कि कुंदकुंद स्वामीने यहाँ यह भावना प्रकट की है कि मैं कायादि तीनों योगोंमेंसे कोई भी नहीं हूँ, न मैं इन्हें स्वयं करता हूँ, न दूसरेसे कराता हूँ और न इनके करनेवालोंको अनुमति ही देता हूँ।।६८।।। आगे इस बातका निश्चय करते हैं कि शरीर, वचन और मन तीनोंही परद्रव्य हैं -- देहो य मणो वाणी, पोग्गलदव्वप्पगत्ति णिद्दिवा।" पोग्गलदव्वं पि पुणो, पिंडी परमाणुदव्वाणं ।।६९।। शरीर, मन और वचन तीनों ही पुद्गल द्रव्यात्मक हैं ऐसे कहे गये हैं और पुद्गल द्रव्य भी परमाणुरूप द्रव्योंका स्कंधरूप पिंड है।।६९।। आगे आत्माके परद्रव्य तथा उसके कर्तृत्वका अभाव सिद्ध करते हैं -- णाहं पोग्गल मइओ, ण ते मया पोग्गला कया पिंडं। तम्हा हि ण देहोऽहं, कत्ता वा तस्स देहस्स।।७।। मैं पुद्गलरूप नहीं हूँ और न मेरे द्वारा वे पुद्गल पिंड -- शरीररूप किये गये हैं। इसलिए निश्चयसे मैं शरीर नहीं हूँ और न उस शरीरका कर्ता ही हूँ। मैं सहज चैतन्यसे उद्भासित अखंड चैतन द्रव्य हूँ और शरीर पुद्गलसे निवृत्त अचेतन पदार्थ है, एक द्रव्य दूसरे द्रव्यका कर्ता नहीं है, सभी द्रव्योंका सहज स्वभावसे शाश्वतिक परिणमन हो रहा है। मैं १. ज. वृ.। २. पुग्गल ज. वृ. । ३. पुग्गला ज. वृ. ।
SR No.009560
Book TitlePravachana Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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