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________________ १५८ कुन्दकुन्द-भारती सत्ताकी आवश्यकता द्रव्यका अस्तित्व सुरक्षित रखनेके लिए ही होती है। यदि सत्तासे पृथक् रहकर भी द्रव्यका अस्तित्व सुरक्षित रह सकता है तो फिर उस सत्ताके माननेकी आवश्यकता ही क्या है? इससे सिद्ध हो जाता है कि द्रव्य स्वयं सत्तारूप है।।१३।।। _अब पृथक्त्व और अन्यत्वका लक्षण प्रकट करते हुए द्रव्य और सत्तामें विभिन्नता सिद्ध करते हैं -- पविभत्तपदेसत्तं, पुधत्तमिदि सासणं हि वीरस्स। अण्णत्तमतब्भावो, ण तब्भवं भवदि कधमेगं।।१४।। निश्चयसे श्री महावीर स्वामीका ऐसा उपदेश है कि प्रदेशोंका जुदा जुदा होना पृथक्त्व है और अन्य पदार्थका अन्यरूप नहीं होना अन्यत्व कहलाता है। जबकि सत्ता और द्रव्य परस्परमें अन्यरूप नहीं होते, गुण और गुणीके रूपमें जुदे-जुदे ही रहते हैं तब दोनों एक कैसे हो सकते है? अर्थात् नहीं हो सकते। सत्ता गुण है और द्रव्य गुणी है। गुण-गुणीमें कभी भी भेद नहीं होता, इसलिए दोनोंमें पृथक्त्व नामका भेद न होनेसे एकता है -- अभिन्नता है, परंतु सत्ता सदा गुण ही रहेगा और द्रव्य गुणी ही। त्रिकालमें भी अन्यरूप नहीं होंगे इसलिए दोनोंमें अन्यभाव नामका भेद रहनेसे एकता नहीं है, अर्थात् भिन्नता है। सारांश यह हुआ कि द्रव्य और सत्तामें कथंचिद् भेद और कथंचिद् अभेद है।।१४।। आगे असद्भावरूप अन्यत्वका लक्षण उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैं -- सद्दव्वं सच्च गुणो, सच्चेव य पज्जओत्ति वित्थारो। जो खलु तस्स अभावो, सो तदभावो अतब्भावो।।१५।। सत्तारूप द्रव्य है, सत्तारूप गुण है और सत्तारूप ही पर्याय है। इस प्रकार सत्ताका द्रव्य गुण और पर्यायोंमें विस्तार है। निश्चयसे उसका जो परस्परमें अभाव है वह अभाव ही अतद्भाव है -- 'अन्यत्व' नामका भेद है। जिस प्रकार एक मोतीकी माला हार सूत्र और मोती इन भेदोंसे तीन प्रकार है उसी प्रकार एक द्रव्य, द्रव्य गुण और पर्यायके भेदसे तीन प्रकार है। जिस प्रकार मोतीकी मालाका शुक्ल गुण, शुक्ल हार, शुक्ल सूत्र और शुक्ल मोती के भेदसे तीन प्रकार है उसी प्रकार द्रव्यका सत्तागुण, सत् द्रव्य, सत् गुण और सत् पर्यायके भेदसे तीन प्रकार है। जिस प्रकार भेद विवक्षासे मोतीकी मालाका शुक्ल गुण, हार नहीं है, सूत्र नहीं है और मोती नहीं है तथा हार सूत्र और मोती शुक्ल गुण नहीं है उसी प्रकार एक द्रव्यमें पाया जानेवाला सत्ता गुण, द्रव्य नहीं है, गुण नहीं है और पर्याय नहीं है तथा द्रव्य गुण और पर्याय भी सत्ता नहीं है। सबका परस्परमें अन्योन्याभाव है। यही अतद्भाव या अन्यत्व नामका भेद कहलाता है। सत्ता और द्रव्यके बीच यही अन्यत्व नामका भेद है।।१५।।
SR No.009560
Book TitlePravachana Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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