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________________ पंचास्तिकाय तथापि उस शरीरसे एकरूप नहीं होता -- अपना अस्तित्व पृथक् रखता है। यह जीव रागादि भावोंसे युक्त होनेके कारण द्रव्यकर्मरूपी मलसे मलिन हो जाता है और इसी कारण इसे एक शरीरसे दूसरे शरीरमें संचार करना पड़ता है।।३४ ।। __ सिद्ध जीवका स्वरूप जेसिं जीवसहावो, णत्थि अभावो य सव्वहा तस्स। ते होंति भिण्णदेहा, सिद्धा वचिगोयरमदीदा।।३५।। जिनके कर्मजनित द्रव्यप्राणरूप जीव स्वभावका सद्भाव नहीं है और शुद्ध चैतन्यरूप भाव प्राणोंसे युक्त होनेके कारण सर्वथा उसका अभाव भी नहीं है, जो शरीरसे रहित हैं और जिनकी महिमा वचनके अगोचर है वे सिद्ध जीव हैं।।३५।। सिद्ध जीव कार्यकारण व्यवहारसे रहित हैं। ण कुदोचि वि उप्पण्णो, जम्हा कज्जं ण तेण सो सिद्धो। उप्पादेदि ण किंचि वि, कारणमवि तेण ण स होदि।।३६।। चूँकि सिद्ध जब किसी बाह्य कारणसे उत्पन्न नहीं हुए हैं अतः वे कार्य नहीं हैं और न किसी कार्यको वे उत्पन्न ही करते हैं अतः कारण भी नहीं हैं।।३६।।। मोक्षमें जीवका असद्भाव नहीं है सस्सधमध उच्छेदं, भव्वमभव्वं च सुण्णमिदरं च। विण्णाणमविण्णाणं, ण वि जुज्जदि असदि सब्भावे।।३७।। यदि मोक्षमें जीवका सद्भाव नहीं माना जाय तो उसमें निम्नलिखित आठ भाव संभव नहीं हो सकेंगे। १. शाश्वत, २. उच्छेद, ३. भव्य, ४. अभव्य, ५. शून्य, ६. अशून्य, ७. विज्ञान और ८. अविज्ञान । इनका विवरण इस प्रकार है -- (१) द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा जीव द्रव्यका सदा ध्रौव्य रहना शाश्वतभाव है। (२) पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा अगुरुलघु गुणके द्वारा प्रतिसमय षड्गुणी हानि-वृद्धिरूप परिणमन होना उच्छेदभाव है। (३) निर्विकार चिदानंद स्वभावसे परिणमन करना भव्यत्व भाव है। (४) मिथ्यात्व रागादि विभाव परिणामरूप नहीं होना अभव्यत्व भाव है। (५) स्वशुद्धात्मद्रव्यसे विलक्षण पर द्रव्य क्षेत्र काल भावरूपचतष्टयका अभाव होना शन्यभाव है। (६) स्व द्रव्य क्षेत्र काल भावरूप चतुष्टयका सद्भाव रहना अशून्यभाव है। (७) समस्त द्रव्य गुण पर्यायोंको एक साथ प्रकाशित करनेमें समर्थ निर्मल केवलज्ञानसे युक्त होना विज्ञानभाव है और (८) मतिज्ञानादि क्षायोपशमिक ज्ञानोंसे रहित होना अविज्ञान भाव है। उक्त आठ भावोंका सद्भाव तभी संभव हो सकता है जबकि आत्माका सद्भाव माना जाय। सिद्ध जीवके शाश्वत आदि सभी भाव संभव हैं अतः सौगतोंने मोक्ष अवस्थामें भी जीवका जो अभाव
SR No.009558
Book TitlePanchastikaya
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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