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________________ ३० कुन्दकुन्द - भारती त्रींद्रिय जीवोंका वर्णन जूभागं भीमक्कणपिपीलिया विच्छियादिया कीडा । जाणंति रसं फासं, गंधं तेइंदिया जीवा । ।११५ । । यतः जूँ, कुंभी, खटमल, चींटी तथा बिच्छू आदि कीड़े स्पर्श, रस और गंधको जानते हैं अतः वे तीन इंद्रिय जीव हैं ।। ११५ ।। चतुरिंद्रिय जीवोंका वर्णन उद्दंसमसयमक्खियमधुकर भमरा पतंगमादीया । रूपं रसं च गंध, फासं पुण ते वि जाणंति । । ११६ । । डांस, मच्छर, मक्खी, मधुमक्खी, भ्रमर और पतंग आदि जीव स्पर्श, रस, गंध और रूपको जानते हैं अतः वे चार इंद्रिय जीव हैं । । ११६ ।। पंचेंद्रिय जीवोंका वर्णन सुरणरणारयतिरिया, वण्णरसप्फास गंधसद्दण्हू | जलचर थलचर खचरा, वलिया पंचेंदिया जीवा । । ११७ ।। देव, मनुष्य, नारकी और तिर्यंच वर्ण, रस, गंध, स्पर्श और शब्दको जानते हैं, अतः पाँच इंद्रिय हैं। पंचेंद्रिय तिर्यंच जलचर, स्थलचर और नभश्चरके भेदसे तीन प्रकारके हैं। सभी पंचेंद्रिय कायबल, वचनबल और यथासंभव मनोबलसे युक्त होते हैं । । ११७ ।। देवा चउण्णिकाया, मणुया पुण कम्मभोगभूमीया । तिरिया बहुप्पयारा, रइया पुढविभेयगदा । । ११८ । । देव भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष और वैमानिकके भेदसे चार प्रकारके हैं। मनुष्य कर्मभूमि और भोभूमिके भेदसे दो प्रकारके हैं। तिर्यंच अनेक प्रकारके हैं और नारकी रत्नप्रभा आदि पृथिवियोंके भेदसे सात प्रकारके हैं ।। ११८ । । जीवोंका अन्य पर्यायोंमें गमन खीणे पुव्वणिबद्धे, गदिणामे आउसे च ते वि खलु । पापुतिय अण्णं, गदिमाउस्सं सलेस्सवसा । । ११९ । । पूर्वनिबद्ध गतिनामकर्म तथा आयुकर्मके क्षीण हो जानेपर वे जीव निश्चयसे अपनी-अपनी लेश्याओंके अनुसार अन्य गति और अन्य आयुको प्राप्त होते हैं । । ११९ । ।
SR No.009558
Book TitlePanchastikaya
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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