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________________ २६ कुन्दकुन्द - भारती हैं और अपने अपने विशेष स्वभावको लिये हुए हैं। ये तीनों व्यवहार नयकी अपेक्षा एक क्षेत्रावगाही होने से एक भावको और निश्चयनयकी अपेक्षा जुदी - जुदी सत्ता के धारक होनेसे भेदभावको धारण करते हैं ।। ९६ ।। द्रव्योंमें मूर्त और अमूर्त द्रव्यका विभाग आगासकालजीवा, धम्माधम्मा य मुत्तिपरिहीणा । मुत्तं पुग्गलदव्वं, जीवो खलु चेदणो तेसु ।। ९७ ।। आकाश, काल, जीव, धर्म और अधर्म ये पाँच द्रव्य मूर्ति -- रूप, रस, गंध, स्पर्शसे रहित हैं, केवल पुद्गल द्रव्य मूर्त है । उक्त छहों द्रव्योंमें जीवद्रव्य ही चेतन है, अवशिष्ट पाँच द्रव्य अचेतन हैं ।। ९७ ।। जीव और पुद्गल द्रव्य ही क्रियावंत हैं जीवा पुग्गलकाया, सह सक्किरिया हवंति ण य सेसा । पुग्गलकरणा जीवा, खंधा खलु कालकरणा दु । । ९८ ।। जीवद्रव्य और पुद्गल द्रव्य ही क्रियासहित हैं, अवशिष्ट चार द्रव्य क्रियासहित नहीं हैं। जीवद्रव्य पुद्गल द्रव्यका निमित्त पाकर और पुद्गल स्कंध कालका निमित्त पाकर क्रियायुक्त होते हैं । । ९८ ।। मूर्तिक और अमूर्तिकका लक्षण जे खलु इंदियगेज्झा, विसया जीवेहिं हुंति ते मुत्ता । से हवदि अमुत्तं, चित्तं उभयं समादियादि । । ९९ । । जीव जिन पदार्थों को इंद्रियद्वारा ग्रहण करते हैं -- जानते हैं वे मूर्तिक हैं और बाकीके अमूर्तिक हैं। मन मूर्तिक तथा अमूर्तिक दोनों प्रकारके पदार्थोंको जानता है ।। ९९ ।। काल द्रव्यका कथन कालो परिणामभवो, परिणामो दव्वकालसंभूदो । दोहं एस सहावो, कालो खणभंगुरो णियदो । । १०० ।। व्यवहारकाल जीव पुद्गलोंके परिणामसे उत्पन्न है तथा जीव पुद्गलोंका परिणाम निश्चय कालानुरूप द्रव्यसे संभूत है। जीव और पुद्गलके परिणमनको देखकर व्यवहारकालका ज्ञान होता है और चूँकि विना निश्चयकालके जीव पुद्गलोंका परिणमन नहीं हो सकता इसलिए जीव पुद्गलके परिणमनसे निश्चयकालका ज्ञान होता है। दोनों कालोंका यही स्वभाव है। व्यवहारकाल पर्यायप्रधान होनेसे क्षणभंगुर है और निश्चयकाल द्रव्यप्रधान होनेसे नित्य है । । १०० ।। कालो त्तिय ववदेसो, सब्भावपरूवगो हवदि णिच्चो । उप्पण्णप्पद्धंसी, अवरो दीहंतरट्ठाई । । १०१ । । 'यह काल है' इस प्रकार जिसका व्यपदेश - उल्लेख होता है वह अपना सद्भाव बतलाता हुआ
SR No.009558
Book TitlePanchastikaya
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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