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________________ कुन्दकुन्द-भारती परमाणुकी विशेषता आदेशमत्तमुत्तो, धादुचदुक्कस्स कारणं जो दु। सो णेओ परमाण, परिणामगुणो समयसद्दो।।७८ ।। जो गुण-गुणीके संज्ञादि भेदोंसे मूर्तिक है, पृथ्वी, जल, अग्नि और वायुका समान कारण है, परिणमनशील है और स्वयं शब्दरहित है उसे परमाणु जानना चाहिए। परमाणुको मूर्त सिद्ध करनेमें कारण स्पर्श, रस, गंध और वर्ण हैं। ये स्पर्शादि विवक्षा मात्रसे ही परमाणुसे भिन्न हैं, यथार्थमें प्रदेशभेद नहीं होनेसे अभिन्न हैं। परमाणुसे पृथिवी, जल, अग्नि और वायुकी उत्पत्ति समानरूपसे होती है। पृथिवी आदिके परमाणुओंकी जातियाँ पृथक्-पृथक् नहीं हैं। यह परमाणु परिणमन स्वभाववाला है इसलिए उसमें कालकृत परिणमन होनेसे पृथ्वी जल आदि रूप परिणमन स्वयं हो जाता है। इसके सिवाय स्कंधमें जिस प्रकार शब्द होते हैं उस प्रकार परमाणु शब्द नहीं होते क्योंकि वह एकप्रदेशी होनेसे शब्दोत्पत्ति में कारण नहीं है।।७८ ।। शब्दका कारण सद्दो खंधप्पभवो, खंधो परमाणुसंगसंघादो। पुट्टेसु तेसु जायदि, सद्दो उप्पादगो णियदो।।७९।। शब्द स्कंधसे उत्पन्न होता है, स्कंध अनेक परमाणुओंके समुदायको कहते हैं। जब वे स्कंध परस्पर स्पर्शको प्राप्त होते हैं तभी शब्द उत्पन्न होता है। शब्दके उत्पादक -- भाषावर्गणाके स्कंध निश्चित हैं अर्थात् शब्दकी उत्पत्ति भाषावर्गणाके स्कंधोंसे ही होती है, आकाशसे नहीं। 'अथवा उस शब्दके दो भेद हैं -- उत्पादित -- पुरुषप्रयोगोत्पन्न और नियत -- वैश्रसिक -- मेघादिसे उत्पन्न होनेवाला शब्द।।७९ ।। परमाणुकी अन्य विशेषताओंका वर्णन णिच्चो णाणवकासो, ण सावकासो पदेसदो भेत्ता। खंधाणं पि य कत्ता, पविहत्ता कालखंधाणं ।।८।। वह परमाणु अपने एक प्रदेशरूप परिणमनसे कभी नष्ट नहीं होता इसलिए नित्य है। स्पर्शादि गुणोंको अवकाश देनेके कारण सावकाश है। द्वितीयादि प्रदेशोंको अवकाश न देनेके कारण अनवकाश है। समुदायसे बिछुड़कर अलग हो जाता है इसलिए स्कंधोंका भेदक है। समुदायमें मिल जाता है इसलिए स्कंधोंका कर्ता है और चूँकि मंदगतिके द्वारा आकाशके एक प्रदेशसे दूसरे प्रदेशपर पहुँचकर समयका विभाग करता है इसलिए कालका तथा द्रव्य क्षेत्र काल भावरूप चतुर्विध संख्याओंका विभाजक है।।८० ।। १. अथवा उप्पादिगो प्रायोगिकः पुरुषादिप्रयोगप्रभवः णियदो नियतो वैश्रुसिको मेघादिप्रभवः। -- ज. वृ.
SR No.009558
Book TitlePanchastikaya
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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