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________________ ४ जोव पदार्थ सामान्य ७३ नही । अत चेतनका या ज्ञानका भले आकार न हो परन्तु उस जीव पदार्थका आकार अवश्य होता है, जिसमे कि यह गुण निवास करता है या जिसमे कि यह चेतन शक्ति प्रतिबिम्बित होती है । बस जीवका यह आकार ही शरीरके आकारका जानना चाहिए। यहाँ प्रश्न हो सकता है कि यदि जीवका आकार है तो शरीर से पृथक् हो जानेपर भी उसे दिखाई देना चाहिए। इसका उत्तर इतना ही जानना कि वह आकार अमूर्तिक तथा अरूपी होता है, जिसका स्पष्टीकरण पहले किया जा चुका है । जीवका अमूर्तत्व अब प्रश्न हो सकता है कि यदि जोत्रका कोई आकार है तो वह इन्द्रियो अवश्य दिखाई देना चाहिए जैसे कि शरीर । यह बात ठीक नही, क्योकि रंग-रूप रखनेवालेको ही आकार नही कहते । रग और आकारमे बहुत अन्तर है | शरीरमे आँखो के द्वारा दो बाते एक साथ देखी जाती है- एक उसका काला गोरापन और दूसरा तिकोन आदि आकार । यह बात ठीक है जितने कुछ भी पदार्थ दृष्ट हैं उन सबमे आँख इन दोनो बातोको एक साथ देखती है, परन्तु इसका यह अर्थ नही कि जितने कुछ भी आकार है वे सब रङ्गवाले ही हैं । घडेके बीचकी पोलाहटका या आकाशका रङ्ग देखा नही जाता परन्तु उसका आकार विचारणा द्वारा जाना जाता है । इसी प्रकार शरीरमे रहनेवाले जीवका भी कोई रङ्ग नही होता यह ठीक है, परन्तु उसका आकार तो होता ही है जो शरीरकी भांति ही हाथ-पांववाला बडा या छोटा होता है । विहीन आकार आँखोसे देखा नही जा सकता पर विचारणा द्वारा जाना जा सकता है। जिस चीज़ को आँख देखती है वही कुछ है, उसके अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं, ऐसा कोई नियम
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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