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________________ ४ जीव पदार्थ सामान्य भाव-मात्र होनेके नाते निराकार तथा स्थायी है। अत. चेतन तो नित्य ही है परन्तु जीवको किसी अपेक्षा अनित्य कहा जा सकता है। कारण कि इसको जन्म-मरण होता है जबकि चेतनको नही होता है। ७. जीवका प्राकार अब प्रश्न होता है कि उस चेतनका तथा शरीरमे बसनेवाले जीवका आकार कैसा होता है ? सो भाई ! जैसा कि पहले बताया गया है चेतन तो प्रकाश मात्र है, इसलिए उसका कोई आकार नही होता। जिस प्रकार कि दीपककी शिखाका कोई आकार हो तो हो, पर उसके प्रकाशका क्या आकार ? प्रकाश सर्वथा निराकार तथा व्यापक होता है, इसलिए चेतन भी सर्वथा निराकार तथा व्यापक है। परन्तु जीव-द्रव्य तथा चेतन-तत्वमे अन्तर होने के कारण जीवके साथ यह नियम लागू नहीं होता। चेतनका कोई आकार भले न हो पर जीवका अवश्य है। इस समस्याको यो समझा जा सकता है कि जिस प्रकार दीपककी शिखा तथा दापक्रके प्रकाशमे अन्तर है, उसी प्रकार जीव तथा जीवके चेतन-प्रकाशमे अन्तर है । जिस प्रकार प्रकाश निराकार होते हुए भी दोपशिखा साकार है, उसी प्रकार जीवका चेतन-प्रकाश निराकार होते हुए भी जीव स्वय साकार है अर्थात् उसकी कोई न कोई आकृति-विशेष अवश्य है। जीवकी आकृति वास्तवमे उस शरीरकी हो है जिनमे कि वह वास करता है। आकार या आकृतिका पयोजन यहाँ केवल लम्बाई-चौडाई मोटाई आदिको रखने वाली किन्ही तिकोन-चौकोर या गोल आदि सूरतोसे है। जिस प्रकार आकाश यद्यपि गपक
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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