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________________ ७० पदार्थ विज्ञान तथा श्वासोच्छ्वास ये कुल दस प्राण कहलाते हैं। जो इन प्राणोसे जोवे सो जीव है। सभी शरीरधारियोको जानने-देखनेके लिए पाँचो इन्द्रियोका आश्रय लेना पडता, मन, वचन व काय इन तीनो बलोका आश्रय लेना पड़ता है, नित्य श्वास भी लेना पड़ता है और इन सबके अतिरिक्त आयके बन्धनमे इस तरह जकड़ा रहना पड़ता है कि जबतक आयु है तबतक तो जीये और आयु समाप्त होनेपर एक क्षण भी न जी सके। तब वह शरीर मर जाता है और पता लगने नही पाता कि इसके अन्दरका वह चेतन निकलकर कहाँ चला गया। अतः शरीधारी सभी चेतन पदार्थ, कीड़ेसे मनुष्य पर्यन्त तकके सभी प्राणी, जीव अथवा प्राणी आदि कहे जाते हैं । इसपर से इतना समझना कि चेतना तथा जीवमे कुछ अन्तर अवश्य है जों अत्यन्त सूक्ष्म दृष्टिसे देखा जाने योग्य है । उस दृष्टिको ही वास्तविक अध्यात्मज्ञान कहते हैं। ठीक प्रकारसे तत्त्वको सुन या पढ़कर उसका मनन करें तथा मनन करके भी उसका निदिध्यासन करें, अर्थात् अपने अन्तर्जीवनकी तदनुसार विचारपूर्वक खोज करें और अनुभव करें, तो अवश्य ही वह दृष्टि आपको प्राप्त हो सकती है। चेतन एक भाव है, जो केवल प्रकाशरूप है, परन्तु जीव एक द्रव्य है। भाव का कोई आकार नही होता, वह व्यापक होता है । परन्तु द्रव्यका तो आकार अवश्य होना चाहिए जैसा कि पदार्थ-सामान्यके प्रकरणमे पदार्थका स्वभाव चतुष्टय बताते हुए सिद्ध किया जा चुका है। क्योकि पदार्थ कहते हैं उसे जो कि गुणोका आश्रय हो या जिसमे गुण रहते हैं। जीव भी एक पदार्थ है जिसमे ज्ञान, सुख आदि अनेको गुण रहते हैं। अत. वह आकारवान् है और साथ-साथ परिवर्तनशील भी, जबकि 'चेतन'
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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