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________________ ४ जीव पदार्थ सामान्य बडा गर्व है। वह समझता है कि उसने सब कुछ जान लिया। परन्तु आश्चर्य है कि वह यह न जान सका कि वह स्वय कौन है। और यदि स्वयं ही को न जान सका तो सब कुछ जानकर भी क्या जाना ? अन्य सारी दुनियाको बात जानकर भी जिसे यह पता नही कि तेरा घर कहाँ है, तो इधर-उधर ठोकरें खानेके अतिरिक्त और करेगा क्या? यदि यही न जान सका कि वह सुख तथा शान्ति कहाँ रहती है, जिसके लिए कि तू इतना अथक परिश्रम कर रहा है, तो तू ही बता कि उसे प्राप्त करना क्या तेरे लिए सम्भव हो सकेगा? सूई घरमे गिर जाये तो गलोमे खोजनेसे काम न चलेगा, घरमे ही प्रकाश करके खोजना होगा। जब तू अपनेको हो न जान सका, जिसके लिए कि यह सब कुछ है तो इस सबको भोगेगा कौन ? भोजन सामने रख कर भी यदि यह न जान सका कि इसे कहाँ खाया जाये तो इसे खायेगा कौन ? और पेट किसका मरेगा? मुँहमे डालनेकी बजाय पेटपर पोत लेगा, क्योकि भूख तो वहाँ ही प्रतीत हो रही है। और यदि ऐसा कर लिया तो तू हो बता कि क्या पेट भरेगा? उसके लिए खानेसे पहले यह जानना होगा कि इसे मुंहसे खाया जाता है। भूख भले पेटमे हो पर खाया पेटसे नही जाता। इसी प्रकार यह सर्व भौतिक साधन भले ही शरीरके लिए हो पर इन्हे भोगनेवाला शरीर नही कोई और ही है। यही कारण है कि शरीरके सर्व साधन उपलब्ध होनेपर भी मानव आनन्द तथा शान्तिका अनुभव नहीं कर रहा है। इन सबको भोगनेवाला वह असल मानव कौन है । यह सब कुछ जिसके जाननेमे आ रहा है, यह दुःख या सुख जिसके महसूस करनेमे आ रहा है, यह सकल विज्ञानका प्रवाह जहाँसे निकला चला आ रहा है, वह जाननेवाला महिमावन्त साधन तथा पदार्थ क्या है ? बिना उसको जाने तेरा सब कुछ जानना इकाई-विहीन शून्यवत् निरर्थक है।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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