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________________ पदार्थ विज्ञान और इस प्रकार अपने पुरुषार्थ की सफलता देखकर आप सन्तुष्ट तथा तृप्त हो जायेंगे । आनन्द-विभोर हो जायेंगे। सत् तथा असत्का निर्णय कर लेनेपर आप जगतमे रहते हुए भी कमलको भांति भिन्न रहेंगे । अपने हर कार्यमे आप कर्तव्यअकर्तव्यका विवेक सदा सामने रखेंगे, क्योकि तब आपको अपनी आन्तरिक नित्य चेतन सत्ता अधिक प्रिय होगी अपेक्षा इस वाह्य अनित्य प्रपचके, जिसे आप माया तथा धोखा समझ लेंगे। जालमे पक्षी उसी समय तक फंसते हैं जब तक कि उन्हे यह पता नही चल जाता कि इस सुन्दर दानेके नीचे जाल बिछा हुआ है, इसी प्रकार इस ससार चक्रमे व्यक्ति उसी समय तक फंसता है जब तक कि उसे यह पता नहीं चलता कि इन दृष्ट सुन्दर आकर्षणो तथा प्रलोभनोके नीचे माया छिपी हुई है। जिस प्रकार यह जानकर कि यह तो जाल है, पक्षी उसपर फैले हुए दानोका लालच नही करता और इस प्रकार उसमे फंस नही पाता, इसी प्रकार यह जानकर कि यह विश्वका समस्त दृष्ट विस्तार केवल माया है, प्रपच है, व्यक्ति इसमे यत्र तत्र फैले हुए आकर्षणो तथा प्रलोभनोका लालच नही करता और इस प्रकार उसमे फैंस नही पाता । जालमे न फँसना ही पक्षीकी स्वतन्त्रता है, वही उसका आनन्द है। इसी प्रकार माया, मोह, ममता आदिमे न फंसना ही व्यक्तिकी स्वतन्त्रता है, वही उसका आनन्द है। बस यही है इस सर्व पदार्थ-विज्ञानको जाननेका प्रयोजन । भैया । तुझे इस मायाके चक्करमे पडे हुए अनन्तकाल बीत गया, जीवनके पीछे जीवन आये और चले गये। परन्तु सदा तू इस । मायाके पीछे दौड़ता रहा। जिस प्रकार मृगको रेत ही दूरसे जल दिखाई देता है और वह उसके पीछे दौड़-दौडकर अपने प्राण खो देता है पर उसकी प्यास नही बुझती, उसी प्रकार इस मायाके
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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