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________________ ३ पदार्थ विशेष होनेके कारण उसे जाननेमे असमर्थ है। हाँ, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान तथा मन पर्यय ज्ञान ये तीनो ही उसे जान सकते है। श्रुतज्ञान उसे परीक्षा द्वारा जान सकता है। यह ज्ञान अत्यन्त महिमावन्त है। सौभाग्यसे यह हम सभीको प्राप्त है। यह अमूर्तिक तथा मूर्तिकको, 'जीव तथा पुद्गलको, सूक्ष्म तथा स्थूलको, वर्तमान, भूत तथा भविष्यत्को, निकट तथा दूरको, सबको यथायोग्य जान सकता है । ऐसे समर्थ साधनके होते हुए हमे निराश नही होना चाहिए। हाँ, इतना अवश्य ध्यानमे रखना चाहिए कि अमूर्तिक, सूक्ष्म, दूरस्थ तथा भूत-भविष्यत्के पदार्थों को हम प्रत्यक्ष नही जान सकते। तर्कणामो द्वारा उन्हें जानकर सिद्ध कर सकते है। मूर्तिक-अमतिकका यह अर्थ भी नही समझना चाहिए कि जिसकी कोई शकल-सूरत या आकृति हो वह मूर्तिक है और जिसकी कोई शकल-सूरत व आकृति न हो वह अमूर्तिक है । भैया | शकलसूरत या आकृति तो प्रत्येक पदार्थकी होती है। बिना आकृतिके कोई पदार्थ नहीं होता। यदि आकृति ही नही तो वह केवल कल्पना मात्र है । आकृतिका यह अर्थ नही कि वह आंखसे दीखनेवाली या कैमरे द्वारा पकडी जानेवाली ही हो। आकृति तो केवल लम्बाई, चौडाई, मोटाई या तिकोन, चौकोन शकलोका नाम है। ये शकलें दो प्रकारकी होती हैं-मूर्तिक अर्थात् दिखाई देनेवाली और अमूर्तिक अर्थात् दिखाई न देनेवाली। जैसे कि इस शरीरको भाकृति तो मूर्तिक है क्योकि दिखाई देती है परन्तु इसमे व्याप्त नो जीव पदार्थ है उसकी आकृति अमूर्तिक है, क्योकि दिखाई नही तिी। भले दिखाई न दे पर वह है तो अवश्य और वह है उसी शरीरके आकार को जिसमे कि वह रहता है। जीवका ममूर्तिक आकार अर्थात् लम्बाई, चौडाई, मोटाई, ऊंचाई अथवा गोल, चौकोनपन आदि सब वैसे ही हैं जैसे कि शरीरके ।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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