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________________ २ पदार्थ सामान्य • गया है । परन्तु पदार्थमे गुण पृथक्-पृथक् वस्तुएँ नही हैं, जो कि उन्हे एकत्रित करके या किसी वस्तुमे भरकर या बांध-जोड़कर कोई पदार्थ बनाया गया हो। इसी प्रकार वृक्षमे डाली टहनी पत्ते फल फूल आदि को यद्यपि जोडकर इकट्ठा तो नही किया गया है, परन्तु उन्हे काटकर पृथक्-पृथक् अवश्य किया जा सकता है । इस प्रकारसे पदार्थमे गुणोके समहको पृथक्-पृथक् भी नही किया जा सकता। वे आम्रफलकी मिठासवत् एकमेक पड़े हैं । केवल बुद्धि द्वारा विश्लेषण करके ही उन्हे पृथक्-पृथक् किया तथा देखा जा सकता है, परन्तु हाथोसे पदार्थके टुकड़े-टुकडे करके उन्हे पृथक् निकाला नही जा सकता। इस प्रकारके गुणोका समूह पदार्थ है। पदार्थमे पाये जाने-वाले तथा जाननेमे आनेवाले स्पर्श, रस, गन्ध, रूप, ज्ञान, सुख, दुख आदि सब उसके गुण कहलाते है। जिस प्रकार 'गुण' पदार्थसे पृथक् कोई स्वतन्त्र वस्तु नही है, इसी प्रकार गुणोसे पृथक् पदार्थ भो कोई स्वतन्त्र वस्तु नही है। कल्पना करो कि आमका हरा पीलापना, उसका कठोर नरमपना तथा उसका खट्टा मीठा स्वाद व गन्ध आदि निकालकर पृथक् कर दिये जायें तो आम नामकी कौन वस्तु शेष रह जायेगी? इसी प्रकार उष्णता, प्रकाशकत्व, दाहकत्व, पाचकत्व आदि गुणोको निकाल देनेपर अग्नि नामकी कौनसी वस्तु शेष रह जाती है ? कोई भी नही। अत गुण तथा पदार्थ पृथक्-पृथक् स्वतन्त्र वस्तुएँ नही हैं बल्कि गुणोका समूह ही एक पदार्थ है, और पदार्थके आश्रय रहनेवाले तथा भिन्न-भिन्न रूपसे प्रतीतिमे आनेवाले ही उसके अनेको गण हैं। इस प्रकार पदार्थ गुणोका एकमेक रूप है। इसी बातको यो भी कह सकते हैं कि गुण अपने-अपने पदार्थ या द्रव्यके आश्रित ही रहते हैं स्वतन्त्र नही। किसी भी पदार्थकी पहचान उसके गुणोको जानकर ही की जा
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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